भगवान् के पहनने से बढ़ जाती है आभूषणों की सुंदरता: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भगवान् कन्हैया इतने सुंदर है कि भगवान् को भी आश्चर्य हो जाता है, ऐसा लिखा हुआ है भागवत में। देखो! मनुष्य ज्यादा बढ़िया कपड़ा पहने तो ज्यादा सुंदर लगता है लेकिन भागवत में लिखा है कि जब वस्त्र और आभूषण भगवान् के अंगों पर पहुंचते हैं तो भगवान् का सौंदर्य नहीं बल्कि कपड़ों की सुंदरता बढ़ जाती है, आभूषणों की सुंदरता भगवान् के पहनने से बढ़ जाती है। भगवान् को सौंदर्य के लिए आभूषणों का क्या महत्व है। वह तो स्वयं इतने सुंदर हैं। जब भगवान् राम वनवासी भेष में चले, तब लोगों ने कहा कि बनवासी होना अच्छा है, क्योंकि यदि वनवासी है न होते तो राजा बन जाते। राजाओं को राजसी भेष धारण करना पड़ता है तो जो यह अंदर सौन्दर्य छुपा हुआ है, इसका दर्शन कैसे हो पाता? सौंदर्य झलका है इस तपस्वी वेश में। इसीलिए श्री सूरदास जी कहते हैं कि जैसे तोता पुराने पंख छोड़कर नये पंख पाकर सुशोभित होता है, इसी तरह राजसी भेष छोड़ने के बाद श्री राम के श्री विग्रह का सौंदर्य और ज्यादा झलक उठा। भगवान् श्री कृष्ण का तो नाम ही श्याम सुंदर है। वे तो चन्द्र है, श्री कृष्ण चन्द्र है। चंद्रमा से भी करोड़ों गुना अधिक शीतल सुशोभित सौंदर्य जिनके कण-कण से बरस रहा है और नित्य नवायमान भगवान का सौंदर्य है। संसार की सुंदरता पहले दिन जितनी अच्छी लगेगी, दूसरे दिन उतनी अच्छी नहीं लगेगी, तीसरे दिन और कम, चौथे दिन उससे भी कम, लेकिन भगवान् की सुंदरता का चमत्कार यह है कि उसमें फीकापन कभी नहीं आता और एक ही शक्ल कभी नहीं दिखती। नेत्र की पलक बंद कर दोबारा देखेंगे तो भगवान् की नई छवि दिखाई देगी, यह विलक्षण बात है, इसीलिए श्री राधा रानी कहती हैं, मैंने आज तक ठाकुर को ठीक से देखा ही नहीं, पहचाना ही नहीं, जब देखने लगती हूं तोआंखों में आंसू भर आते हैं और आंखें डबडबाई रहती है इसीलिए ठीक से दिखते नहीं और जब आंखें पोंछकर देखूं तो वे दिखाई देते नहीं, उनके अंदर मैं ही दिखाई देने लगती हूं। वे इतने सुंदर हैं शीशे की तरह कि जब मैं उन्हें देखने लगती हूं, तो वे तो दिखाई देते नहीं, मैं ही उनके अंदर दिखाई देने लगती हूं और किसी तरह पर्दा करके दूर से देखूं तो भी हर पल में नई छटा बनती है। भगवान् श्री राधा-कृष्ण दोनों सदा मिले हुए हैं। बिरह और संयोग दोनों का संगम है। जहां संयोग में भी वियोग की कल्पना होती रहे, वह प्रेम किस सीमा का होगा। श्री राधा रानी का सिर श्याम सुंदर की गोद में रहता है और वे हां प्राण बल्लभ! हां श्याम सुंदर! पुकारती रहती हैं। जिनकी गोद में सिर रखा है, फिर उनके लिए पुकार, संयोग में वियोग है। पलक झपकने का जो विरह होता है, वह भी असह्य होता है। वहां प्यास ही प्यास है,वहां नित्य नई नवीनता है। भगवान् श्री राधा कृष्ण आनंद सिंधु हैं। आनंद सिंधु परमात्मा ही हम आपको युगल सरकार के रूप में दर्शन दे रहे हैं। परमात्मा श्री राधा कृष्ण के दर्शन पूजन चिंतन मनन से जीवन में आनंद ही आनंद रहता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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