पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, यदि कथा, कीर्तन और मन से स्मरण नहीं हो पाता, तब भगवान् की मूर्ति की पूजा करो, समीप के मंदिर में वहां कर लो, अन्यथा घर में पूजा करो। शंकर के दो प्रकार के विग्रह मिलते हैं, एक पिंडी या शिवलिंग के रूप में, दूसरा साकार रूप में। ऐसा दूसरा कोई देवता नहीं है जिसकी दो रूप में पूजा होती है। केवल शंकर की साकार और निराकार दोनों रूपों में पूजा होती है क्योंकि यह महादेव हैं। शिव की पिंडी भगवान् की ज्योति है लिंगम् चिन्हं, ऐसा शास्त्र कहते हैं। शिवलिंग ज्योति रूप का चिन्ह है जैसे जलते दीपक के ऊपर एक ज्योति रूपा आकृति बन जाती है। वैसे ही पिण्डी निराकार ज्योति प्रतीक है। पंचानन, डमरूधारी, त्रिशूलधारी शिव का साकार रूप है। भगवान् शंकर के तीन रूप हैं, रुद्र, महेश्वर और शिव। शिव ज्योति रूप हैं, महेश्वर और रुद्र साकार रूप हैं। भगवान शंकर की पिंडी-ज्योति रूप है और भगवान् का साकार विग्रह महेश्वर रूप है, रूद्र रूप है। यद्यपि अंतर कुछ नहीं है, जैसे- एक है, पानी, दूसरा है बर्फ। पानी ही बर्फ बनता है। जैसे पानी तृप्ति देता है, वैसे ही बर्फ भी तृप्ति दे सकता है, उससे भी काम चल सकता है। इसी प्रकार निर्गुण ज्योति रूप, शिव सगुण साकार, महेश्वर बनकर प्रकट हो जाते हैं। परम तत्व सुप्रीम पावर ज्योति है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान