मनुष्य सुख की प्राप्ति के लिए करता हैं कर्म: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीनारदजी भगवान श्री कृष्ण के दर्शन के लिए द्वारिका अकसर आते रहते थे। श्री वसुदेव जी ने नारद मुनि से पूछा कि भगवन! मनुष्य कर्म करता है सुख पाने के लिये लेकिन मिलते दुःख ही हैं। कर्मों से आज तक किसी को पूर्ण सुख नहीं मिला और आप जैसे ऋषियों का दर्शन दुःख के नाश के लिये और सुख की प्राप्ति के लिये हुआ करता है। हम आपसे भागवत धर्म के बारे में जानना चाहते हैं। वैष्णव धर्म क्या है? तब नारद जी ने जवाब दिया कि जो प्रश्न आपने हमसे किया है वही प्रश्न एक बार विदेहराज जनक ने नव योगेश्वर से किया था और उन्होंने जो वैष्णव धर्म का निरूपण किया, वह इस प्रकार है। नव योगेश्वरों ने कहा, राजन्! आपने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। हम आपके प्रश्नों का उत्तर देते हैं। वैष्णव धर्म क्या है? और उसको पालन करने का फल भी क्या है? यह ध्यान दें। देखो राजन! वैष्णव धर्म एक प्रकार का राजमार्ग है, राजमार्ग पर चलने वाला आंखें मूंदकर भी दौड़ता चला जाये तब भी न कभी फिसलेगा न कहीं गिरेगा। वैष्णव धर्म का पहला सूत्र है कि मन,वाणी, शरीर और बुद्धि इनसे जो भी कर्म हो, उसका फल भगवान् को समर्पित कर दिया जाये। वैष्णव अपने आपको भगवान् का दास मानता है मुनीम मानता है। जैसे सेठ दुकान पर अपना मुनीम बिठा दे, तब उस दुकान से जो लाभ होगा, वह सेठ का होगा, मुनीम तो अपनी तनख्वाह लेगा। वैष्णव अपने को ईश्वर का मुनीम मानता है। वह अपने घर को अपना नहीं मानता। वह घर को, परिवार को, सारे सदस्यों को ईश्वर का मानता है और प्रभु ने हमें इनकी सेवा के लिये नियुक्त किया है। यह शरीर भी उस प्रभु ने बनाकर दिया है। इसीलिए इस शरीर से हम जो भी कर्म करेंगे, उसका फल ईश्वर को देंगे। पुत्र पैदा कर लिया लेकिन वह ईश्वर का है, धन कमा लिया लेकिन वह ईश्वर का है। उसका हम यथोचित उपयोग कर सकते हैं, दुरुपयोग नहीं करना, धर्म कार्य में लगाना। जितनी उचित जरूरतें हैं,उतना उपयोग कर लेना, बाकी सदुपयोग करना। कर्म फल की इच्छा नहीं रखना। संसार को भी भगवान् के रूप में देखते रहना। यही वैष्णवता है। परमात्मा के मधुर मंगलमय चरित्रों को, उनके जन्मों को, उनके कर्मों को सुनना और उनके पवित्र चरित्र गाना, अनासक्त होकर संसार में विचरण करते रहना- यह वैष्णव का धर्म है। जो परमात्मा का भक्त बन जाता है, प्रभु के कीर्तन में कभी वह रोने लगता है, कभी गाने लगता है और कभी नाचने लगता है। उसके हृदय में ऐसा भाव बनता है, फिर वह अपने को रोक नहीं पाता। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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