महारास में हर भक्त के साथ होते हैं श्रीकृष्ण: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भगवान् श्री कृष्ण का महारास श्री धाम वृंदावन में हुआ। रास प्रारंभ हुआ। देवता भी बाजे बजा रहे थे। ऊपर से पुष्प वृष्टि कर रहे थे। जय जयकार हो रही थी। एक विलक्षण रस की वर्षा हो रही थी। पहले हुआ रास और बाद में हुआ महारास। रास जब होता है तब बीच में राधा-कृष्ण का जोड़ा होता है और चारों तरफ भक्त होते हैं और महारास में हर भक्त के साथ श्री कृष्ण होते हैं। यदि करोड़ों भक्त हैं तो करोड़ों रूप में श्री कृष्ण उनके साथ होते हैं। इसका आध्यात्मिक अर्थ बहुत सुंदर है। जब जीव प्रारंभ में उपासना करता है तो इंद्रियां अनेक होती हैं और भगवान् एक होते हैं लेकिन जब उपासना चरम सीमा पर पहुंच जाती है तो चित्त की जितनी वृत्तियां होती हैं, उतना भगवान् उनके साथ जुड़ा हुआ नजर आने लगता है। चित्त की वृत्ति ही भक्त है और श्री कृष्ण भगवान् है। भगवान् पूर्ण हैं, वह जो भी कार्य करते हैं पूर्ण ही किया करते हैं। अगर ग्रहण करें तो भी पूर्ण और यदि छोड़ें तो भी पूर्ण, योगी बने तो पूर्ण, वियोगी बने तो पूर्ण, रागी बने तो भी पूर्ण, बैरागी बने तो पूर्ण,स्वयं पूर्ण हैं और जब पूर्ण हैं तो अपूर्ण कार्य कैसे करेंगे। जब गोपांगनाओ के साथ नृत्य होने लगा, तब नाचते-नाचते यदि किसी गोपी का हार टूट कर नीचे गिर गया, तब ठाकुर जी ने उसे झुकने नहीं दिया, पहले ही झुककर उठाया और उसके गले में बांध दिया। आध्यात्मिक दृष्टि से जीव और ब्रह्म के मिलन को ही महारास कहते हैं। जैसे ही कोई साधक साधना में इतना लीन हो जाता है, कि वह अपने को भूलता है कि भगवान् के दर्शन हो गये। ईश्वर के दर्शन में कठिनाई यही है कि हम अपने अहम् को नहीं भूल पाते। अहंता और ममता, ये दो ही बाधक हैं, ईश्वर के दर्शन में और जीव अनादिकाल से मैं और मेरे के बंधनों में जकड़ा हुआ है। इसीलिये हमें ईश्वर के दर्शन नहीं होते। भजन साधन करते हुये मैं को भूलना है। ईश्वर तो मिले मिलाये हुये हैं। ईश्वर एक क्षण के लिए भी जीव से बिछुड़े नहीं हैं।मैं ही बीच में बाधक बना हुआ है। जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं। सब अंधिआरा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग,गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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