पुष्कर/राजस्थान। श्री गणेश महापुराण कथा सप्तम दिवस- लिला खंड श्री गणेश जी के अवतार-श्री गैणेश जी की अवतार असंख्य होने पर भी उनमें आठ बहुत प्रसिद्ध है। (1) वक्रतुंड- जो सिंह वाहन तथा मत्सरासुर के हन्ता हैं। (2) एकदंत- जो मूषक वाहन तथा मदासुर के हन्ता हैं। (3) महोदर- जो मूषक वाहन ज्ञानदाता तथा मोहासुर के नाशक हैं। (4) गजानन- जो मूषक वाहन साख्यों को सिद्धि देने वाले एवं लोभासुर के हन्ता हैं। (5) लम्बोदर- जो मूषक वाहन तथा क्रोधासुर के हन्ता वे।,(6) विकट- जो मयूर वाहन तथा कामासुर की हन्ता हैं। (7) विघ्नराज – जो शेष वाहन और मयासुर के प्रहर्ता वे। (8) धूम्रवर्ण- जो मूषक वाहनअ हंतासुर के हन्ता हैं। इसमें संकेत है कि श्री गणेश जी साधक के अरिष्ट का नाश करके परम पद प्राप्ति करने का संकेत उनकी अवतार लीला से ज्ञात होता है।युगभेद से गणेश के विभिन्न रूपों का ध्यान÷(1) कृतयुग में- सिंहारूढ़, दशबाहू, तेजोरूप तथा कश्यप के सुत श्री गणेश जी का ध्यान करना चाहिए। (2) त्रेतायुग में- मयूरवाहन,षडभुज, शशिवर्णं तथा शिवपुत्र श्री गणेश का ध्यान करें। (3) द्वापर में÷ मूषकारूढ़, चतुर्भुज, रक्तवर्ण तथा वरेण्य सुत के रूप में श्री गणेश का ध्यान करें। (4) कलियुग÷ धूम्रवर्ण, द्विवाहू, तथा सर्वभावद्य रूप में श्री गणेश का अध्ययन करके उनकी उपासना विहित है। बारह महीनों में गणेश जी की उपासना- (1) चैत्रमास में- वासुदेव रूपी गणेश जी की उपासना करके सुवर्ण दक्षिणा देनी चाहिए। (2) वैशाखमास में-‘ संकर्षण’ रूपी गणेश जी की उपासना करके शंखदान देना चाहिए। (3) जेष्ठमास में- ‘प्रद्युम्न’ रूपी गणेश जी की पूजा करके फल- मूल दान देना चाहिए। (4) आषाढ़मास में- ‘अनिरुद्ध’ रूपी गणेश की अर्चा करके सन्यासियों को तुम्बी पात्रदान देना चाहिए। (5) श्रावणमास में- ‘बहुला गणेश जी, की पूजा का विधान है।(6) भाद्रमास में-‘ सिद्धिविनायक’ की पूजा का विधान है। (7) आश्विन में- ‘कपर्दीश’ गणेश जी की पूजा पुरुषसूक्त से करना चाहिए। (8) कार्तिकमास में – करक चतुर्थी व्रत करने का विधान है। (9) मार्गशीर्ष में- चार संवत्सर पर्यंत पालनीय व्रत की विधि। (10) पौषमास में- ‘विध्ननायक’ गणेश को, (11)माघमास में- संकष्टव्रत लेकर पूजा करने का विधान है।(12) फाल्गुनमास में- ‘ढूंढीराज’ गणेश व्रत करने का विधान है। मंगलवार पर चतुर्थी आये तो उसे अंगारक चतुर्थी कहते हैं। जो विशेष फलदायक होती है। रविवार के दिन चतुर्थी आये तो विशेष फल की प्राप्ति होती है। दूर्बा-दूर्बा पुष्टिदायक सर्वदोष हर, कहलाती है। धान के अतिरिक्त घास में कम से कम पाँच गुना प्रोटीन अधिक होती है। मद्रास के समीप घास के बिस्कुट, रोटी बनाने वाला कर्मागार भी काम करता है।