पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीमद्भागवत महापुराण में श्री कृष्ण के अवतार की व्याख्या करते हुए महा महापुरुष कहते हैं कि- अब आप अपने हृदय को, अपने मन को ही मथुरा मान लो। कलियुग ही कंस है , शरीर कारागार है, मन मथुरा है, इसमें चित्त हैं वसुदेव और बुद्धि है देवकी। मोह हथकड़ियां और बेड़ियां हैं । लोहे की बेड़ियां कभी कट सकती हैं लेकिन मोह की बेड़ियों को काटना बहुत मुश्किल है। हम भी यह भावना पैदा करें कि प्रभु वसुदेव और देवकी की तरह हम भी बंधे पड़े हैं। हम भी शरीर रूपी कारागार में जकड़े पड़े हैं। हम भी चारों तरफ शत्रुओं से घिरे पड़े हैं। हे दीनानाथ ! हम साधनविहीन हैं, हम कुछ कर नहीं पा रहे हैं। अनादिकाल से भटक रहे हैं। हे दयासिंधु ! जैसे अंबा देवकी के सामने चतुर्भुज रूप में, नारायण रूप में प्रकट हो करके आपने उनके बंधन खोले, उनके शत्रुओं को नष्ट किया और उनके जीवन में जो आनंद आपने प्रदान किया, हे मेरे ठाकुर! वही ज्योति एक बार मेरे चित्त में जगा दो ताकि हमारे चित्त और बुद्धि में जो मोह और आसक्ति की बेड़ियां है, वह कट जायें । काम, क्रोध, लोभ और अहंकार आदि जो शत्रु हैं, वह मर जाएं और देह का जो बंधन है,वह ढीला हो जाये और हम सदा के लिए आपके चरणों में निवास करें -ऐसी भावना बनाकर प्रभु का पावन अवतार श्रवण और गान करना चाहिए। बार-बार ऐसी भावना बनाकर कथा श्रवण करेंगे , तो विश्वास करो कि किसी न किसी समय आपको परमात्मा का प्रकाश मिलेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)