रामायण की मर्यादा का पालन किये बिना, ईश्वर का प्रेम नही होगा प्राप्त: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि वेद ने जो कुछ कहा है, उसी के अनुसार रामायण है। वेद ने जिस धर्म का निरूपण किया, भगवान् श्रीराम ने उसके स्वरूप को अपने चरित्र से सिद्ध करके दिखाया। “वेदोऽखिलो धर्ममूलम्”। समस्त धर्मों का मूल वेद है क्योंकि वेद ईश्वर की वाणी है। वेद ईश्वर के स्वांस से प्रगट होते हैं। परमात्मा ने वेदों में जो कुछ कहा, श्री राम के रूप में अवतार लेकर अपने चरित्र के द्वारा प्रगट कर दिया। इसीलिए भगवान् श्रीराम के विषय में भी शास्त्रों में लिखा है, रामो विग्रहवान् धर्मः श्री राम मूर्तिमान धर्म है। ब्रह्म होते हुये भी वे धर्म की मर्यादा का पालन कैसे करते हैं ? इसका वर्णन रामायण में है और प्रभु श्री राम अपने चरित्र से समाज को शिक्षा देते हैं। यदि रामायण के आदर्शों को हम अपने जीवन में उतार लें तो यह परिवार, समाज और देश स्वर्ग बन सकता है। व्यक्ति नर से नारायण बन सकता है। रामायण की मर्यादा यदि जीवन में आ जाये तो- भगवान् श्री कृष्ण का प्रेम,भगवान् शंकर का विश्वास एवं दिव्य प्रेम भी प्राप्त हो सकता है। रामायण की मर्यादा का पालन किये बिना ईश्वर का प्रेम प्राप्त नहीं होगा, ऐसा शास्त्र कहते हैं। इसलिए भगवान् श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज ने श्री रामचरितमानस की रचना करके समस्त धर्म शास्त्रों के दिव्य ज्ञान को सबके लिए सुलभ कर दिया। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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