शिवचरित्र सुनने से ही मिलती हैं शांति: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि ब्रह्माजी ने नारदजी को भगवती सती का परम पावन चरित्र सुनाया। नारद जी ने कहा- पिताजी! सती ने शरीर छोड़ा फिर क्या हुआ? उन्होंने कौन- सा रूप धारण किया?इसके बाद भोलेनाथ ने क्या किया? यह सब हमें विस्तार से सुनाओ। शिवचरित्र सुनने से ही शांति मिलती है। क्योंकि श्रीमन्नारायण ने नारद जी को संकेत दे ही दिया था। जपहु जाय शंकर शतनामा। होइहैं हृदय तुरत विश्रामा।। शिव का नाम जपने से तुरंत शांति मिलेगी।भोले शंकर अति शीघ्र शांति देते हैं। यह शांति के दाता है क्योंकि यह सदैव समाधि में रहते हैं, यह सदैव अपने स्वरूप में स्थित रहते हैं। जैसे किसी को आंख बंद किये बैठे समाधिस्थ हुए देखो, तब आपकी भी आंखें बंद होने लगेगी, सामने किसी को नाम जपते देखो, तब आपके मुख से भी स्वाभाविक ही नाम निकलने लगेगा, कोई सामने नाच रहा होगा, ताल और लय के साथ किसी को नाचते देखकर आपके भी पैर थिरकने लगेंगे, सिर हिलने लगेगा। यह क्रिया करनी नहीं पड़ती, स्वयमेव होने लगती है। जब आप शिव की उपासना करने लगते हैं, भगवान शंकर ज्यादातर ध्यान में ही रहते हैं, परिणाम क्या होगा? आप भी वही करने लगोगे। जब आप ध्यान में जाओगे, तब ध्येय की प्राप्ति हो जायेगी और आपका जीवन सफल हो जायेगा। इस चौरासी लाख योनि में विषयनन्दी सभी बने हुए हैं,

आप योगानन्दी बनो। नहि स्वात्मारामं विषयमृगतृष्णा भ्रमयति। श्री पुष्पदंत जी महाराज श्री शिव महिम्न स्त्रोत में कहते हैं- जिसे आत्मानंद की अनुभूति हो गई, ऐसा व्यक्ति विषयों के पीछे पागल नहीं होता, विषयों के पीछे दौड़ता नहीं। प्रारब्ध से जो प्राप्त है ठीक है अन्यथा विषयों के पीछे-पीछे डोलता नहीं रहता, क्योंकि वे साधक आत्मा के आनंद में ही रमण करते हैं और संतुष्ट रहते हैं। पंजाबी का भजन है- किसे नाल राग नहीं किसे नाल द्वेष नहीं। आत्मा आनन्द मेरी कोई भी क्लेश नहीं।। जिनको जाना उत्त है वह क्यों लोढें इत्त। जैसे परघर पाहुना रहे उठाये चित्त।। गुरु नानक जी की वाणी में परमार्थ से संबंधित बहुत अच्छी सीख है। जैसे पुत्र की ससुराल में जाओ, वहां आपका कितना मान सम्मान होता है कि दामाद जी के पिताजी आये हैं। शाह जी! यह लो, तब क्या शाहजी उनका सम्मान पाकर अपना घर भूल जाते हैं। एक दिन के बाद ही वापस जाने को तैयार हो जाते हैं। बहुत कहने पर, एक-दो दिन के लिए भी नहीं रुकते क्योंकि समझदार पिता जानता है कि पुत्र की ससुराल का सम्मान चार दिन का है, गुजारा अपने ही घर होना है, इसलिए अब चलो। अध्यात्म में यह मानते हैं कि तू राम भजन कर प्राणी जीवन दो दिन का, मुख्य तो परमात्मा की शरण ही है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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