कोई भी पद लिंग सापेक्ष नहीं होता

नई दिल्ली। संसद का मानसून सत्र प्रारम्भ होने से पूर्व ऐसे अनेक शब्दों के प्रयोग से बचने की सांसदों को सलाह दी गई थी जो असंसदीय और अमर्यादित हैं। साथ ही संसद परिसर में विरोधधरना और प्रदर्शन पर भी रोक लगा दी गई थी। लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि सांसदों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। विरोध प्रदर्शन के साथ ही ऐसे शब्दों का भी जाने- अनजाने प्रयोग किया जा रहा हैजो सम्मानजनक नहीं है।

यह हद से पार हो गई जब कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने मीडिया से बातचीत में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के लिए राष्ट्रपत्नी‘ का सम्बोधन कर दिया। इसे लेकर गुरुवार को सदन का माहौल काफी गरम हो गया। निःसन्देह देश के शीर्ष संवैधानिक पद पर आसीन किसी सम्माननीय महिला के लिए ऐसे शब्द का प्रयोग पूरी तरह से अनुचितअमर्यादित और अक्षम्य है।

यह भारतीय सभ्यतासंस्कृति और संस्कार के भी प्रतिकूल है। नारी के प्रति सम्मान भारतीय संस्कृति का सदियों से हिस्सा रहा है। प्रेसिडेण्ट के लिए राष्ट्रपतिमिस्टर के लिए श्री और सर्वश्री जैसे अनेक शब्दों का सृजन किया गया। राष्ट्रपति शब्द का जब प्रस्ताव सरकार को प्रेषित किया गया था तब यह भी बात सामने आई थी कि यदि कोई महिला राष्ट्रपति पद पर आसीन होती है तब क्या होगा ?

उस समय यह व्यवस्था दी गई थी कोई भी पद लिंग सापेक्ष नहीं होता है। इसलिए राष्ट्रपति शब्द ही महिला और पुरुष दोनों के लिए प्रचलन में रहेगा। प्रतिभा देवी सिंह पाटिल पहली महिला राष्ट्रपति हुई थीं और अब द्रौपदी मुर्मू इस पद पर आसीन हैं। इसलिए अमर्यादित सम्बोधन नहीं होना चाहिए। वैसे अधीर रंजन चौधरी ने स्वीकार किया है कि चूक वश उनसे यह बड़ी गलती हुई है। इसलिए इस प्रकरण का अब पटाक्षेप होना चाहिए जिससे कि संसद में अन्य आवश्यक कार्य हो सके।

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