पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, शुभ कर्म और स्वधर्म के आधार पर वैराग्य प्राप्त करने वाला ही नरोत्तम है- विदुर चरित, श्री विदुर जी ने कहा- धृतराष्ट्र ! तुम्हें धिक्कार है। उपदेशक की वाणी में कटुता आ सकती है। लेकिन हृदय कटु नहीं होता। सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस। राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास।। व्यास गद्दी पर बैठ कर बोलने वाला यदि भय से या आस से मधुर बोलता है तो वह श्रोता का कभी भला नहीं कर सकता। श्री विदुर जी ने कहा- धृतराष्ट्र ! अभी तक मैं सोचता था कि तुम्हारी केवल बाहर की आंखें फूटी हैं, अंदर के ज्ञान नहीं,वो ठीक हैं। लेकिन आज तुम्हारी भाषा से ऐसा लग रहा है कि तुम्हारी अंदर की आंखें भी गायब हो चुकी हैं, तुम्हारे सौ पुत्रों में एक पुत्र भी नहीं बचा। देशभर का राज्य तुम्हारे पास था, आज तुम अनाथ की तरह पाण्डवों के यहां पड़े हो। भीमसेन, जिसे तुमने चूर चूर करने का विचार किया, आज वह तुमको कुत्ते की तरह रोटियां दे रहा है और उसके बाद भी तुम यहीं मरना चाहते हो। जो क्षत्रिय वीर घर में मरता है, उसका उद्धार नहीं होता। क्षत्रिय को धर्म युद्ध करते-करते या रण में मरना चाहिए या तप करते हुए बन में मरना चाहिए। जिस व्यक्ति को अपने आपके विचार से या महापुरुषों के उपदेश से वैराग्य नहीं हुआ, वह व्यक्ति इंसान कहलाने का अधिकारी नहीं, वह तो पशु है। श्रेष्ठ इन्सान कौन है ? अपने विचारों से या संतो के उपदेश से जिसको वैराग्य प्राप्त हुआ और हृदय में हरी को बसाकर घर से निकलकर जीते जी जो वन अर्थात् धाम चला गया वही नरोत्तम है, वही इंसान कहलाने का अधिकारी है। अभी भी तुम्हें जीने की आशा है। अब जी कर तुम क्या पाओगे। वृद्ध लोगों से संतजन कहा करते हैं कि बच्चों को आशा है कि उन्हें युवानी मिलेगी, विवाह होगा, यह सुख मिलेगा, वह सुख मिलेगा। युवान को भी आशा है कि अभी युवानी है, बुढ़ापा आने पर देखा जायेगा लेकिन जो बूढ़ा हो चुका है उसे अब क्या आशा है, उसे सीधे श्मशान में जाना है। सिवाय श्मशान के उसके लिए और आगे क्या है? सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)