पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि सत्संग के अमृतबिंदु-सबसे बड़ा यज्ञ क्या है? श्री कृष्ण का चिंतन करना ही सबसे बड़ा यज्ञ है। जो निरंतर ईश्वर का चिंतन कर रहा है, वह सतत यज्ञ ही कर रहा है। यज्ञ शब्द “यज्” धातु से बना है। इसका अर्थ है दान-पूजा तथा जप और तप का फल है- अंतःकरण की शुद्धि। सदा भगवत् चिंतन मानव की बड़ी उपलब्धि है। वैसे भी यज्ञ में आहुति देते समय कहा जाता है- “इदं न मम” यह मेरा नहीं अर्थात् सब तेरा ही है और तुझे ही दे रहा हूं। समर्पण और त्याग का संदेश यज्ञ देता है। दक्षिणा क्या है? ज्ञान का उपदेश देना ही दक्षिणा है। ज्ञान महादान है। इसीलिए शास्त्रों ने विद्या पढ़ाना अर्थात् विद्यादान सबसे विशिष्ट दान बताया है। दक्षिणा में दिया धन, वस्तु, वस्त्र समाप्त हो जायेंगे परंतु ज्ञान और विद्या प्राप्त कर्ता के पास धरोहर के रूप में सदा बनी रहेगी। स्वामी विवेकानंद जी ने इसकी सुंदर व्याख्या की है। वे कहते हैं- भूखे को एक दिन रोटी दो, तो अगले दिन फिर भूखा का भूखा रहेगा। एक महीने की रोटी दे दो तो अगले महीने फिर मांगेगा।एक वर्ष या कितना भी अवधि का राशन उसे दे दो, तो अवधि के साथ वह राशन भी समाप्त हो जायेगा। यदि किसी को सच्चा ज्ञान दे दें तो वह उसके जीवन में सदा रहेगा और दूसरों को भी दे सकेगा। इससे अनेकों को लाभ होगा। यदि आपके पास है तो ज्ञान दान अवश्य कीजिये। वैदिक परंपरा रही है कि गुरु निःस्वार्थ भाव से शिष्य को और शिष्य आगे ज्ञान बांटते रहते हैं। वहां प्रवेश शुल्क, सुविधा शुल्क, शिक्षा शुल्क कुछ न था। हां, शिष्य जीवन पर्यंत गुरु की सेवा करता था, उनका कृतज्ञ रहता था। यदि ज्ञान नहीं दे सकते तो अर्थ से विद्वान अथवा विद्यार्थी की सहायता करें। जैसे काशी में रहने वाला कोई निर्धन ब्राह्मण विद्या अध्ययन करना चाहता है अगर आप उसका प्रबंध करवा देते हैं, तो आपको अपार पुण्य के साथ-साथ काशी वास का फल मिलेगा। सहयोग की अपेक्षा सक्षम बनाना श्रेष्ठ है। अतः ज्ञान दान करें। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग ,गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।