पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भोले बाबा को समाधि में बड़ा आनंद आता है। समाधि में परमानंद है। अंदर जाने का थोड़ा अभ्यास किया करो। भगवान् शंकर की समाधि खुल गई। समाधि खुलने में हेतू कामदेव था। हम साधकगण समाधि लगाना चाहते हैं, लेकिन समाधि लगती नहीं। लेकिन निष्काम साधक की समाधि खुलती ही नहीं, श्रीशिवमहापुराण लिखा है कि पानी में डूब जाना लोहे का स्वभाव है। यदि लोहा तैर रहा है तब निश्चित है की लोहा किसी सूखे काष्ठ के साथ जुड़ा हुआ है। यदि उसे काष्ठ से अलग कर दिया जाय फिर लोहा डूब जायेगा। हम सब का मन अंदर समाधि में डूब जाना चाहता है लेकिन कामनाओं की लक्कड़ से हमने उसे ऐसा बाँध रखा है कि वह बेचारा ऊपर ही ऊपर रहता है। नीचे जा ही नहीं पाता। जरा कामनाओं का त्याग करो। जहां तुम्हारे मन में एक बार यह संकल्प उठ जाए कि हमें कुछ नहीं चाहिए, बस समाधि की और आपकी प्रगति आरंभ हो गई, मन आपका अंदर की ओर जाना प्रारंभ हो जाएगा। बस अब कुछ नहीं चाहिए। कुछ नहीं चाहना, यह स्वयं ईश्वर का रूप है और यही समाधि है। सारा दिन काम-काज की दौड़-धूप के उपरान्त, शाम को भोजन करने के बाद हर व्यक्ति यही कहता है कि अब कुछ नहीं चाहिए, अब सोने दो। जब व्यक्ति कुछ नहीं चाहता, तब खूब गहरी नींद आती है और उस गहरी नींद में आनंद भी गहरा होता है। कुछ नहीं चाहिए,अर्थात् मन अंदर गया। आप लेट गए हो, सोने की कोशिश कर रहे हो, लेकिन यदि मन कुछ चाहता है, तब कम्पोज खाकर भी नींद नहीं आती और यदि कुछ नहीं चाहिए, तब भोजन करते ही आप गहरी निद्रा में सो जायेंगे। एक सज्जन ऐसे थे कि भोजन के बाद उनके हाथ उनकी पत्नी धुलाया करती थी। वह भोजन खाते-खाते ही सो जाते और वहीं बगल में पड़े बिस्तर पर लुढ़क जाते थे। संकल्पों का अभाव होना समाधि के लिए अति आवश्यक है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।