पुष्कर/राजस्थान। श्री नरसी जी संपूर्ण संसार में प्रसिद्ध भक्त हुए। जिन्होंने गुजरात प्रान्त को पावन किया। उस समय गुजरात के निवासी महास्मार्त थे, भक्ति भजन को बिल्कुल नहीं जानते-मानते थे। छाप और कण्ठी, तिलकधारी किसी वैष्णव को देखकर उसकी बड़ी निंदा करते थे। ऐसे देश-कुल एवं वायुमंडल में उत्पन्न होकर भी श्री नरसी जी वैष्णव भक्त शिरोमणि हुए। ऊसर के समान उस देश को सुंदर हरा-भरा, भक्तिरस से परिपूर्ण सरोवर बना दिया। देश के दोषों को नष्ट कर दिया। आपने अनेक स्थानों पर भक्ति पूर्ण चमत्कार दिखलाये। जिसमें रस की रीतियों का संपूर्ण रूप से संगम होता है, ऐसे माधुर्य-रसमायी भक्ति को अपने हृदय में धारण किया।
सत्संग के अमृतबिंदु- श्वांस के साथ जप- मन को रोककर परमात्मा में लगाने का एक अत्यंत सुलभ उपाय है, जिसका अनुष्ठान सभी कर सकते हैं। वह है आने जाने वाले श्वास प्रश्वास की गति पर ध्यान रखकर श्वास के द्वारा श्रीभगवान के नाम का जप करना। यह अभ्यास उठते-बैठते, चलते-फिरते, सोते-जगते, खाते-पीते हर समय, प्रत्येक अवस्था में किया जा सकता है। इसमें श्वांस जोर-जोर से लेने की भी कोई आवश्यकता नहीं है।श्वास की साधारण चाल के साथ ही साथ नाम का जप किया जा सकता है। श्वास के साथ-साथ नाम का जप करते समय चित्त में इतनी प्रसन्नता होनी चाहिए कि मानो मन आनंद से उछल पड़ता हो। यदि इतने आनंद का अनुभव न हो तो आनंद की भावना ही करनी चाहिए। इसी के साथ भगवान को अपने अत्यन्त समीप जानकर उनके स्वरूप का ध्यान करना चाहिए। मानों उनके समीप होने का प्रत्यक्ष अनुभव हो रहा है। इस भाव से संसार की सुध भुलाकर मन को परमात्मा में लगाना चाहिए। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि- कल पंच दिवसीय श्री नरसी भगत की कथा एवं नानी बाई का मायरा, द्वितीय दिवस की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी,
दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)