सत्संग के द्वारा जीवन की धारा को योग की ओर मोड़ देना ही है जीवन का परम लक्ष्य: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि सत्संग के द्वारा जीवन की धारा को योग की ओर मोड़ देना ही जीवन का परम लक्ष्य है। योग का अर्थ परमार्थ और ईश्वर की आराधना से है। यह शरीर रथ है, इंद्रियां घोड़े हैं, मन लगाम है और बुद्धि सारथि है, जीवात्मा इसमें रथी है, गुरु का दिया हुआ मंत्र धनुष है, चित्त की वृत्ति बाण है और लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति है। गुरु के मंत्र का जप करते हुए मंत्र को धनुष मान लो और चित्त की वृत्ति को बाण मान लो, अपने चित्त को सीधे ईश्वर की ओर चला देना है, और चित्त ईश्वर में लग गया जीवन सफल हो गया। मानव जीवन में युवावस्था एक ऐसा केंद्र है जहां से दो धारायें निकलती हैं, एक योग की, दूसरी भोग की। अगर भोगों की ओर मुड़ गये तो वह रास्ता सीधे दुःख के समुद्र तक पहुंचायेगा, चिंताओं की आग जहां लगी है, वहां वह रास्ता खत्म होता है। और यदि दूसरे योग के रास्ते पर चल पड़े तो आगे जगदीश्वर मिल जायेंगे, हमेशा के लिये शांति मिल जायेगी। समुद्र मंथन का अभिप्राय है हृदय का मंथन, जिससे हृदय में भक्ति प्रकट हो जाये। समुद्र मंथन का अभिप्राय अपने हृदय-मंथन से है।मानव का हृदय भी एक समुद्र है। वह दूध का समुद्र था, मथा गया। उससे अमृत निकला, जिसे देवताओं ने पिया। हमारे आपके हृदय में भी। भक्तिरस अमृत भरा पड़ा हुआ है। जब हम अपने हृदय का मंथन करेंगे तो हमारे हृदय से जो भक्ति प्रकट होगी, उसका पान करके हम सदा के लिये अमर हो जायेंगे। एक बात और ध्यान रखने योग्य है कि समुद्र मंथन जब प्रारंभ हुआ तब पहले जहर निकला, उसके बाद रत्न निकले और अंत में अमृत निकला। भगवान् नारायण ने देवताओं से कह दिया कि पहले जहर निकलेगा, उसको देखकर घबराना नहीं, बीच में रत्न निकलेंगे उनमें लुभाना नहीं और तीसरे कदम पर अमृत निकलेगा। यह हमारे जीवन की बहुत श्रेठ गाथा है, जब हम भजन करने चलेंगे, पुराना जितना पाप है, कचरा है, वह बाहर निकलने लगेगा तो जहर रूपी दुःख आयेंगे, उनमें घबराना नहीं और आगे चलकर सफलता और नोटों के बंडल आने लगेंगे तो उनके लोभ में मत फंस जाना। तीसरे कदम में परमात्मा की प्राप्ति हो जायेगी। भक्ति तब मिलेगी जब विपत्ति में घबराओगे नहीं और संपत्ति में लुभाओगे नहीं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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