राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि चरणे कृपा हस्त कृपा तवैवा, चित्ते कृपा नयन कृपा तवैवा। हारे कृपा कटि कृपा कंकणे कृपा हि,
सर्व कृपामयी नमो नमस्ते। मां आनंद रूपा है, मां के चरण, मां के हाथ, मां की दृष्टि, मां का संपूर्ण स्वरूप आनंदमय है। मां का एक नाम आनंदमयी है। स्वर्ण की मूर्ति में सब कुछ सोना ही होता है। ऐसे मां भगवती कृपा की मूर्ति हैं सब कुछ कृपा ही है। किसी की तरफ कृपा दृष्टि से देख लिया, उसका ही कल्याण हो गया। किसी को चरणों की कृपा मिल गई, किसी को हस्त कमल की कृपा मिल गई। मां तो संपूर्ण कृपामई है। मां सच्चिदानंद मई है, चैतन्यता पाने के लिए मां की आराधना करनी पड़ती है। मां की आराधना के बिना जीवन से जड़ता जाने वाली नहीं है। बुद्धि के पात्र में चैतन्य नहीं समा सकती, माँ की शरण लेनी पड़ती है। मां के मिलन में छः शत्रु बाधा डालते हैं सच पूछो तो यही शुंभ- निशुंभ है, जिसे हम अपना मानते हैं, उसमें हमार मोह होता है।
किसी में मोह न हो इसके लिए संसार में जो कुछ है सब परमात्मा का है। मां भगवती और परमात्मा को अपना मानने लग जाए। मेरे भगवान हैं, मां जगदंबा मेरी है। ऐसी भावना आ जाने से मोह समाप्त हो जाता है। संसार के मोह की यही औषधि है। मद हमारी आपकी जिंदगी में छुप करके आता है। हम सो जाते हैं, लेकिन हमारे अंदर का अभिमान जगा रहता है। मत्सर, जलन, ईर्ष्या- दूसरे की उन्नति से प्रेरणा लेना चाहिए। मत्सर कुछ करने नहीं देता। श्री कृष्ण को भगवान कहते हैं क्योंकि- नाम है मदन मोहन। मद भी नहीं है, मोह भी नहीं, हम लोग दोनों को ढो रहे हैं। काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर को मिटाया तो नहीं जा सकता है। लेकिन इन पर निग्रह अवश्य किया जा सकता है। जिससे हम किसी भी प्रकार के अनिष्ट से बच सकें। काम को संयम से, क्रोध को दया से, लोभ को दान से, मोह को भगवान को अपना बना कर, मद जो कुछ अपने पास है सब भगवान का है ऐसी भावना करने से, मत्सर हे परमात्मा! मुझे भी शक्ति दो, प्रार्थना करके जीता जा सकता है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम-वात्सल्यधाम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में, चातुर्मास के अवसर पर श्री मार्कंडेय महापुराण के अष्टम दिवस, दुर्गा सप्तशती का गान किया गया। कल की कथा में मां की अन्य महिमा का गान किया जायेगा।