नई दिल्ली। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कही जाने वाली मीडिया अपने प्रसारण और तमाम कार्यगुजारियों के चलते कहीं न कहीं निशाने पर आ जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना की अनियंत्रित हो गए मीडिया पर तल्ख टिप्पणी में निहित अर्थ को समझना होगा। झारखंड की राजधानी रांची में शनिवार को न्यायमूर्ति एस बी सिन्हा स्मृति व्याख्यान के शुभारम्भ में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मीडिया एजेंडे पर कार्य करते हुए कंगारू कोर्ट चला रहा है जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक है।
मीडिया ट्रायल से किसी मामले में निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सकता। जो मामले कोर्ट में विचाराधीन हैं उन पर मीडिया ट्रायल कर राय बनाई जा रही है। यहां तक कि इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया में अभियान तक चलाए जा रहे हैं। इलेक्ट्रानिक मीडिया गलत जानकारियों से भरी डिबेट चला रहा है। इनमें न्याय प्रणाली को भी विषय बनाया जाता है जिससे न्यायाधीश की निष्पक्ष कार्यप्रणाली और लोग प्रभावित हो रहे हैं।
यह लोकतंत्र के सेहत के लिए घातक है। मुख्य न्यायाधीश ने प्रिंट मीडिया की सराहना की जिसकी विश्वसनीयता और जवाबदेही बनी हुई है लेकिन इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया की जवाबदेही शून्य है। इलेक्ट्रानिक मीडिया अपनी हदें तोड़कर अफवाह फैला रहा है जिससे समाज में असंतोष बढ़ रहा है। उपद्रवी तत्वों के मीडिया के इस तरह के अनर्गल प्रचार से बल मिल रहा है जो जनहित में नहीं है। इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया की जवाबदेही तय होनी चाहिए। इन्हें जिम्मेदार बनना होगा।
मीडिया के लिए सख्त नियम बनाना समय की मांग है। जनताके लिए मीडिया उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी न्यायपालिका। मीडिया को समाज के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। साथ ही ऐसे प्रसारण से बचने की जरूरत है जिससे समाज में नफरत फैले। सामाजिक सरोकार और समाज में शांति व्यवस्था मीडिया की बड़ी जिम्मेदारी है। उसे आत्मचिंतन करते हुए स्वयं नियंत्रित करने की जरूरत है।
समाज को नयी दिशा देने में मीडिया की अहम भूमिका है जिसका निष्पक्षता से पालन करते हुए अपनी क्षमता का उपयोग लोगों को शिक्षित और उचित मार्गदर्शन करने में करे। लोगों को भी मीडिया पर अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। इसका उपयोग समाज को जागरूक करने में करें ताकि देश को शांतिपूर्ण और समृद्ध बना सकें।