नई दिल्ली। आज यानी 10 नवंबर 2021, बुधवार को छठ महापर्व का मुख्य त्योहार मनाया जा रहा है। चार दिनों तक चलने वाले छठ पर्व में आज डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हुए छठी मैया की पूजा आराधना की जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। छठ पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में मनाया जाने वाला त्योहार है। इसे खाततौर पर बिहार, झारखंड और पूर्वी भारत में बहुत ही उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। छठ के त्योहार को सू्र्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। छठ के पर्व में उगते हुए और डूबते हुए सूर्य दोनों को अर्घ्य दिया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले छठ पूजा पूजा में सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा होती है। इस बार छठ का मुख्य त्योहार 10 नवंबर को है, जिसमें शाम के समय ढ़लते हुए सूर्य को अर्ध्य देते है फिर अगली सुबह सूर्यदेव को जल अर्पित कर व्रत का पारण करते हैं। जैसे दिवाली का पर्व 5 दिनों का,नवरात्रि का पर्व 9 दिनों का होता है, उसकी प्रकार से छठ पूजा 4 दिनों तक चलने वाला एक लोक पर्व है। इस पर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है और सप्तमी तिथि को समापन हो जाता है। छठ पर्व माताएं अपनी संतान के सुख-समृद्धि,अरोग्यता और लंबी आयु की कामना के लिए रखती हैं। इस साल छठ पर्व का शुभारंभ बीते 08 नवंबर को नहाए-खाए के प्रारंभ हो गया। नहाए खाए छठ पूजा का पहला दिन होता है। इसमें सुबह-सुबह घर की साफ-सफाई करते हुए स्नान करके मन में पूजा और व्रत का संकल्प लेते हुए शाकाहारी भोजन किया जाता है। खरना छठ पर्व का दूसरा दिन होता है। खरना के दिन पर जो व्रत रखता है उस दिन वह बिना जल की ग्रहण किए व्रत रखा जाता है। शाम के समय खरना में गुड़ की खीर, रोटी के घी और फल आदि को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। तीसरा दिन छठ पर्व का मुख्य दिन होता है। इसमें षष्ठी तिथि पर शाम के समय सूर्यदेव को अर्ध्य दिया जाता जाता है। सूर्य को अर्घ्य देने से पहले नदियों के किनारे लोग एकत्रित होकर बांस की टोकरी में फल, ठेकुआ, लड्डू और अन्य पूजन सामग्री को सूप में सजाया जाता है। व्रती छठी माई की पूजा करती हैं और सूर्य को अर्घ्य देते हुए अपने परिवार के सुख समृद्धि की कामना करती है। चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठी माई को याद करते हुए माताएं अपने परिवार की सुख और समृद्धि का वर मांगती है और प्रसाद खाकर व्रत का पारण करते हैं। शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं, उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए ये पर्व मनाया जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरूष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया। सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है। शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है। इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है। बांस की टोकरी या सूप, दूध, ठेकुआ, जल, पत्ते लगे गन्ने, पानी वाला नारियल, चावल, सिंदूर, दीपक, धूप, अदरक का हरा पौधा, हल्दी, मूली, मीठा नींबू, शरीफा, केला, नाशपाती, शकरकंदी, सुथनी, अगरबत्ती, धूप बत्ती, कपूर, मिठाई, गुड़, चावल का आटा, गेहूंपान, सुपारी, शहद, कुमकुम, चंदन।