वैष्णव सिद्धांत में युगल पूजा का है विधान: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवती लक्ष्मी भगवान नारायण की अनपायिनी शक्ति हैं जैसे भगवान नित्य हैं वैसे लक्ष्मी जी भी नित्य हैं। जिस प्रकार भगवान सर्व व्यापक है उसी प्रकार लक्ष्मी जी भी सर्व व्यापक है। जिस तरह भगवान अखिल कोटि ब्रह्मांड नायक हैं, उसी तरह लक्ष्मी जी अखिल कोटि ब्रह्माण्ड नायिका हैं । जिस तरह भगवान उत्पत्ति पालन और संहार के हेतु हैं उसी तरह से श्री जी भी उत्पत्ति पालन संहार की हेतु हैं । इसीलिए पूज्य गोस्वामी जी ने कहा है-

उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं। वैष्णव सिद्धांत में भगवान और भगवती में तत्वतः कोई भेद नहीं है। रूप दो हैं लेकिन तत्व एक है। जो गुण भगवान के हैं वो सब श्री जी के भी हैं। क्यों रूप दो हैं लेकिन तत्व एक ही है। इसलिए गोस्वामी जी कहते हैं- गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न। बंदउँ सीताराम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न।।

हम लोंगो को माता-पिता दोनों का स्नेह प्रदान करने के लिए एक ही भगवान दो रूपों में दर्शन दे रहे है। श्री लक्ष्मी जी जगत माता हैं और भगवान जगत पिता है। वैष्णव सिद्धांत में युगल पूजा का विधान है।

श्याम तेजो विना यस्तु गौरतेजस्समरचयेत। जपेत व ध्यायते वाऽपि सा भवे पातकी।। युगल सरकार का नाम जप, भजन, पूजन करने से भक्तों का भी लोक और परलोक दोनों बन जाता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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