पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, अब समुद्र मंथन का प्रसंग है। समुद्र मंथन का अभिप्राय अपने हृदय मंथन से है। हमारा हृदय भी एक समुद्र है। वह दूध का समुद्र मथा गया। उससे अमृत निकला जिसे देवताओं ने पिया। हमारे-आपके हृदय में भी भक्तिरसामृत भरा पड़ा है। जब हम अपने हृदय का मंथन करेंगे तो हमारे-आपके हृदय से जो भक्ति प्रकट होगी, उसका पान करके हम सदा के लिए अमर हो जायेंगे। एक बात और ध्यान रखने योग्य है कि समुद्र-मंथन जब प्रारंभ हुआ तब पहले जहर निकला, उसके बाद रत्न निकले और अंत में अमृत निकला। भगवान नारायण ने देवताओं से कह दिया कि पहले जहर निकलेगा, उसको देखकर घबराना नहीं और बीच में रत्न निकलेंगे उसमें लुभाना नहीं और तीसरे कदम में अमृत निकलेगा। ये हमारे-आपके जीवन की बहुत बढ़िया गाथा है। जब हम भजन करने चलेंगे, पुराना जितना पाप है, कचरा है, वह बाहर निकलने लगेगा तो जहर रूपी दुःख आयेंगे, उनमें घबराना नहीं और आगे चलकर नोटों के बण्डल आने लगेंगे तो उनके लोभ में मत फंस जाना। तीसरे कदम में परमात्मा की प्राप्ति हो जायेगी। भक्ति तब मिलेगी जब विपत्ति में घबराओ गे नहीं और संपत्ति में लुभाओगे।
हम पर विपत्ति आई और भगवान् का भजन छोड़ दिया, इतने दिन भगवान का भजन किया, फिर भी हमारे दुःख दूर नहीं हुये, इसका मतलब है कि- आप भगवान् के साथ व्यापार करते हो। द्रोपदी के पांच पुत्रों का सिर कटा, एक भी पुत्र नहीं रहा, भगवान पास खड़े थे। क्या द्रोपती ने भगवान् का भजन छोड़ दिया? भक्त सोचता है कि यह सब लीला है, यह सब स्वप्न का खेल है, ईश्वर जो मेरे साथ कर रहा है, उसमें ही मेरा भला है। भक्तों का बस यही एक फार्मूला है कि जो मेरे साथ हो रहा है, उसमें मेरा भला है क्योंकि मैंने अपना जीवन कन्हैया को दे दिया है। जब उसे दे दिया तो जो हो रहा है ठीक हो रहा है। आप उसकी और देखते रहो। जब वह देखेगा कि हर अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति में यह भक्तों मुझे ही को देख रहा है, फिर उसे अपने नाम की लाज रखनी पड़ेगी। विपत्ति आये तो घबराओ नहीं, संपत्ति आये तो उसमें लुभाओ नहीं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)