पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्री विष्णु महापुराण की क्या विशेषता है? श्री विष्णु महापुराण अठ्ठारह पुराणों में परम सात्विक पुराण है। अठ्ठारह पुराण तीन प्रकार के हैं। छः पुराण सात्विक हैं,छः पुराण राजस और छः पुराण तामस। सतोगुण, रजोगुण तमोगुण तीन गुणों से युक्त होने के कारण पुराण भी त्रिगुणात्मक है। श्री वैष्णव भक्ति का मूल सिद्धांत भी श्री विष्णु महापुराण में ही वर्णित है। हम सभी वैष्णव हैं। भगवान् श्री राम,भगवान श्री कृष्ण,भगवान श्री नारायण के उपासक हैं। श्री विष्णु महापुराण में वैष्णव धर्म का निरूपण और भगवान विष्णु को परम तत्व के रूप में बताया गया है। अन्य पुराणों अन्य देवों को परम तत्व बताया गया है, निर्णय कैसे हो कि परम तत्व कौन है? तो कहते हैं इसका ज्ञान सात्विक ज्ञान के द्वारा होता है। सत्वगुण का परिणाम ही ज्ञान है। इसलिए गीता में भगवान ने कहा- ‘ सत्वात् संजायते ज्ञानं ‘। जब हमारे अंदर सात्विकता बढ़ेगी, तब ही शुद्ध ज्ञान होगा। सतोगुण को प्रकट करने के लिए सात्विक आहार, विहार, विचार, शास्त्र, सब कुछ सात्विक ही सेवन करना चाहिए। आराधना भी तीन प्रकार की होती है। तमोगुणी आराधना करने पर तमोगुण बढ़ता है। श्री विष्णु महापुराण में भगवान व्यास कहते हैं- मुमुक्षवो घोर रूपान् हित्वा भूत पतीनथ।
नारायण कला शान्ताः भजन्तिह्यन्सूयवः।। मुमुक्षवो घोर रूपान्- जो मुमुक्षु प्राणी है, जो संसार के आवागमन से मुक्ति चाहते हैं। ऐसे मनुष्य क्या करें? तो भगवान व्यास कहते हैं-‘ हितवा भूत पतीनथ ‘ भूत, प्रेत, अगिया बेताल, की आराधना को छोड़कर- ‘ नारायण कला शांताः ‘ कला अर्थात् अवतार, भगवान के जो रूप हैं- राम,कृष्ण,नृसिंह,वामन, इत्यादि। ‘भजन्ति’- परम सत्व- भगवान की आराधना करें। रजोगुण, तमोगुण के रहने पर हमारा ज्ञान संशयात्मक होता है। निश्चयात्मक नहीं होता है। ज्ञान तो सबके अंदर कुछ न कुछ होता है। लेकिन निर्णयात्मक ज्ञान, भ्रांति रहित ज्ञान,तब होता है, जब हमारे अंदर सात्विकता होती है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।