भगवत शरणागति ही सफलता का है मूल मंत्र: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि गजेंद्र मोक्ष व्यक्ति हर जगह चतुराई दिखाता है। संसार में तो हम चतुराई से सफल हो जाते हैं, लेकिन अध्यात्म मार्ग में भगवत शरणागति ही सफलता का मूल मंत्र है। वहां चतुराई काम नहीं आती है, अध्यात्म मार्ग में चतुराई बाधक है। मन कर्म वचन छाड़ि चतुराई। भजत कृपा करिहैं रघुराई। व्यक्ति जब तक हारता नहीं तब तक भगवान की शरण नहीं ग्रहण करता। अपनी बुद्धि विवेक के भरोसे चलता है। हारता है तो भगवान की शरण ग्रहण करता है। सुने री मैंने निर्बल के बल राम। भगवान इतने दयालु हैं, कल्याण करते हैं। गजेंद्र ने भगवान को याद किया भगवान ने उसकी रक्षा की, सर्व विधि मंगल किया। प्रश्न- राजा परीक्षित ने पूछा- गजेंद्र तो हाथी था जब ग्राह ने पकड़ा, संकट आया, ऐसी परिस्थिति में उसे भगवान की याद कैसे आ गई? उत्तर- श्री शुकदेव जी ने उत्तर दिया- पूर्व जन्म के संस्कार के कारण इसको भगवान की याद आयी। गजेंद्र पूर्व जन्म में इंद्रद्युम्न का नाम का राजा था।

इसने जिस स्त्रोत का पाठ किया था संकटकाल में उसी स्त्रोत का स्मरण हो आया। मनुष्य की जब मृत्यु होती है, उसी के साथ उसने जो कुछ अर्जित किया है, सब छूट जाता है। लेकिन संस्कार उसके साथ अगले जन्म में भी जाते हैं। अच्छे बुरे जो कुछ हमने कर्म किए हैं, उसका जो हमारे जीवन में संस्कार बना है, वह अगले जन्म में भी हमारे साथ जाने वाला है। इसलिए व्यक्ति को सत्कर्म ही करना चाहिए, ताकि अच्छे-अच्छे संस्कार बनेंगे, इस जीवन में भी मंगल होगा और अगले जन्म में भी श्रेष्ठ संस्कार लेकर पैदा होंगे, अच्छे कर्म करेंगे और मंगल ही मंगल होगा। अच्छे कर्म अनंत-अनंत काल तक कल्याणकारी है और बुरे कर्म अनंत-अनंत काल तक अकल्याणकारी हैं। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में, (श्री दिव्य चातुर्मास महामहोत्सव) पितृपक्ष के अवसर पर पाक्षिक भागवत कथा के चौथे दिवस श्री कृष्ण जन्म की कथा का गान किया गया। कल की कथा में नंदोत्सव की कथा का गान किया जायेगा।

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