नई दिल्ली। भारतीय चिकित्सा परिषद ने चिकित्सकों के लिए फार्मा और स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आचार संहिता जारी कर रखी है। इसमें डाक्टरों द्वारा उपहार लेने से लेकर अन्य प्रलोभन शामिल है। परन्तु इनकी पालना को लेकर अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता। वहीं दवा निर्माताओं को बाधित करने वाली कोई आचार संहिता नहीं है।
यही कारण है कि दवा कम्पनियां लोगों को लूटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती। डोलो 650 तो बुखार में दी जानेवाली एक सामान्य दवा हैं लेकिन कोरोना काल में इसका खेल भी फैडरेशन ऑफ मेडिकल एण्ड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन की सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिक के कारण उजागर हो गया।
हालांकि दवाओं में मार्जिन और जेनेरिक, ब्राण्डेड और प्रोपेगंडा दवाओं के बारे में आम आदमी अब अनजान नहीं है। वह जानता है कि खास तौर से प्रोपेगंडा दवा तो उसे कहीं मिलेगी तो जिस डाक्टर को उसने दिखाया है उसके आसपास की दवा की दुकान पर ही मिलेगी। यह कटु सत्य है और इसे नकारा नहीं जा सकता।
हालांकि अब अस्पतालों में कार्य समय में इतने एमआर दिखाई नहीं देते परन्तु जिस तरह से कोरोना काल में डोलो का खेल सामने आया है इससे दवा निर्माताओं की मार्केटिंग चैन के पुख्ता होना अवश्य सिद्ध होता है। सामान्यतः जरूरतसे अधिक दवाएं लिखना आम है। इसी तरह से प्रयोग होना भी आम है। अमेरिका सहित अनेक देशों में दवा क्षेत्र पर भी कानूनी अंकुश है।
इंग्लेण्ड, फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, इटली, रूस, चीन, वेनेजुएला, अर्जेंटिना, हांगकांग, मलयेशिया, ताइवान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया सहित अनेक देशों में सख्त कानून है और दवा बनाने वाली कम्पनियों पर अनैतिक तरीके अपनाने पर कड़ी काररवाई का प्रावधान है।
हमारे यहां अखबारों के माध्यम से यह जानकारी मिलती है कि अमुक दवा में साल्ट की मात्रा कम ज्यादा होने के कारण उसके प्रयोग पर रोक लगा दी है। परन्तु जब तक यह जानकारी आम होती है तब तक उस बैच की अधिकांश दवा बिक चुकी होती है। ऐसे में अमानक दवा होने की स्थिति में सख्त सजा का प्रावधान भी होना चाहिए। दवा सीधे आम आदमी के स्वास्थ्य से जुड़ी है।
गरीब आदमी इससे अधिक प्रभावित होता है। गरीब आदमी इलाज कराते- कराते सड़क पर आ जाता है। ऐसे में इस तरह की लूट की खुली छूट नहीं होनी चाहिए। हालांकि दवा कम्पनियों की लूट किसी से छिपी नहीं है और दबी जुबान में आवाज उठती रही है। आज माइक्रो लेब एवं चिकित्सक लाख सफाई दें परन्तु सचाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि कोरोना काल में डोलो 650 जैसी दवा कैसे रातों रात सबसे पसंदीदा बन गई। दवा कम्पनियोंको भी अपनी आचार संहिता बनानी चाहिए तो सरकार को भी सख्ती दिखानी ही होगी।