हिमाचल में प्राकृतिक खेती के गुर सीख रहे है देश-विदेश के किसान

हिमाचल प्रदेश। हिमाचल में देश और विदेश के किसान प्राकृतिक खेती के गुर सीख रहे है। अंग्रेजी खाद और जहरीले कीटनाशकों और फफूंद नाशकों का इस्तेमाल कर तैयार फसलों से जहां मानव स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है और साथ ही पर्यावरण भी प्रभावित होता रहा है। प्रदेश में कांगड़ा, मंडी, शिमला और सोलन जिला में किसान रसायनमुक्त खेती करके प्राकृतिक खेती अपनाकर फसलों की पैदावार कर रहे हैं। प्रदेश में डेढ़ लाख किसान साढ़े छह लाख हेक्टेयर भूमि में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। राज्य सरकार पिछले तीन साल से प्रदेश में किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। इसके साथ ही किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए देसी गायों को भी उपदान में उपलब्ध कराया जा रहा है, ताकि देसी खाद तैयार करने में मदद मिल सके। चालू साल में सरकार ने पचास हजार नए किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ा जाना है। राज्य में फ्रांस से 28 साल की कैरोल डूरंड अपने सहयोगी महाराष्ट्र के शहजाद प्रभु के साथ प्राकृतिक खेती की बारीकियों के गुर सीखने हिमाचल आई हैं। डूरंड पांच साल पहले योग सीखने भारत आई थीं। उनका रुझान प्राकृतिक खेती सीखने को हिमाचल आईं। उन्होंने कहा कि उनके दादा एक किसान थे। फ्रांस में वह स्ट्राबैरी की खेती करते थे, जिसमें वह लगातार रासायनिक स्प्रे किया करते थे। इस उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा और वह मस्तिष्क के कैंसर से मर गए। शहजाद प्रभु के अनुसार किसानों से मिल कर प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी जुटाना एक बहुत अच्छा अनुभव रहा है। डूरंड ने रासायनिक खेती के दुष्प्रभाव के बारे में अपने विचार साझा करते हुए कहा कि उनके यहां पर रासायनिक खेती ने किसानों के स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंचाया है। प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के कार्यकारी निदेशक डॉ. राजेश्वर सिंह चंदेल से किसानों की अपनाई प्राकृतिक खेती देखने के बाद अपने अनुभवों को साझा किया।

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