नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पदोन्नति के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं माना जाता है, लेकिन पदोन्नति के लिए विचार को मौलिक अधिकार के रूप में विकसित किया गया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बीवी नागरत्न की पीठ ने कहा है कि शीर्ष अदालत ने बार-बार पदोन्नति के लिए विचार किए जाने के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाने पर जोर दिया है।
पीठ ने कहा है कि इससे पहले भी संविधान पीठ ने अजीत सिंह के मामले में कहा था कि अगर कोई व्यक्ति जो पदोन्नति के लिए पात्रता और मानदंड को पूरा करता है, लेकिन फिर भी उसकी पदोन्नति के लिए विचार नहीं किया जाता है, तो यह उसके मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन होगा।
शीर्ष अदालत ने चार दिसंबर 2019 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए एक बार फिर इस सिद्धांत पर जोर दिया। हाईकोर्ट ने कनिष्ठ इंजीनियरों के एक समूह द्वारा राज्य सरकार के लघु सिंचाई विभाग द्वारा पदोन्नति से इनकार करने के खिलाफ दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि लघु सिंचाई विभाग की विचाराधीन वरिष्ठता सूची को खत्म किया ही जाना चाहिए। शीर्ष अदालत के कहा है कि यदि वरिष्ठता सूची को कायम रखने की अनुमति दी जाती है, तो कृषि स्ट्रीम के कनिष्ठ इंजीनियरों की तुलना में मैकेनिकल और सिविल स्ट्रीम में अधिक मेधावी इंजीनियर पदोन्नति के लिए विचार किए जाने के अधिकार से वंचित हो जाएंगे।
वास्तव में उन्हें पदोन्नत होने का यह अधिकार तब मिल पाएगा, जब समान चयन प्रक्रिया में कृषि स्ट्रीम के सभी कनिष्ठ अभियंताओं का चयन हो जाएगा और वे पदोन्नत हो जाएंगे।