नई दिल्ली। आन्तरिक और वैश्विक चुनौतियों के बीच चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में जीडीपी विकास दर का 13.5 फीसदी के स्तर पर रहना अर्थव्यवस्था के लिए न केवल सुखद है, बल्कि यह इस बात का भी प्रमाण है कि आर्थिक मोरचे की स्थिति अच्छी है। यह कोरोना पूर्वकाल वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही से 3.8 प्रतिशत अधिक है।
चीन सहित कुछ अन्य देशों की तुलना में भारत की आर्थिक विकास दर बेहतर है, लेकिन महंगी और बेरोजगारी के मोर्चे पर अभी काफी कार्य करने की आवश्यकता है। मुद्रास्फीति की दर में कमी लाने के साथ ही बेरोजगारी को कम करने का भी ठोस प्रयास होना चाहिए। महंगांई से आम जनता की मुश्किलें बढ़ी हैं और इससे उनकी क्रयशक्ति घटी है।
यह अर्थव्यवस्था के हित में नहीं है। महंगाई पर अंकुश लगाना अत्यन्त आवश्यक है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) से जारी आंकड़ों के सन्दर्भ में यह अनुमान पहले से ही लगाया गया था कि आर्थिक वृद्धि दर दहाई अंकों में रहेगी, जो सत्य साबित हुआ। रेटिंग एजेंसी इक्राने जीडीपी वृद्धि दर 13 प्रतिशत और भारतीय स्टेट बैंक की रिपोर्ट में जीडीपी के 15.7 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया गया था। इसी प्रकार भारतीय रिजर्व बैंक ने इस माह मौद्रिक नीति समीक्षा में 2022- 23 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 16.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था। जो भी हो, आर्थिक वृद्धि दर को संतोषजनक कहा जाएगा और दूसरी तिमाही में इसमें और वृद्धि की आशा व्यक्त की जा सकती है।
ताजे आंकड़ों में यह भी कहा गया है कि पहली तिमाही में मेन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का विकास 4.8 प्रतिशत है जबकि इसके पिछले वर्ष यह 4.9 प्रतिशत था। जो आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं, उनमें कुछ चिन्ता के भी बिन्दु हैं। कृषि क्षेत्र की विकास दर 2.2 प्रतिशत है जबकि पिछले साल पहली तिमाही में यह 4.5 प्रतिशत थी। इसी प्रकार निर्माण, परिवहन, संचार से जुड़े क्षेत्रों में भी पिछले वर्ष की आलोच्य अवधि की तुलना में बेहतर प्रदर्शन नहीं हुआ है। इन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।