जब तक जीवन में प्रेम नहीं आ जाता, तब तक ज्ञान का नहीं है कोई महत्व: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, अर्जुन की यह मजबूरी है कि वह बिना श्रीकृष्ण के नहीं रह सकते। भगवान् हस्तिनापुर में रहते तो अर्जुन हस्तिनापुर में रहते और श्रीठाकुरजी यदि द्वारिका चले आये तो हस्तिनापुर में कुछ दिन रहना भी अर्जुन के लिये कठिन हो जाता था और अर्जुन पीछे-पीछे चले आते थे। एक बार अर्जुन द्वारिका गये, अर्जुन और भगवान् दोनों एक आसन पर बैठ गये, अर्जुन थके हुए थे। बातें हो रही थी, अर्जुन बात करते-करते ही सो गये। उधर महल के भीतर कथा हो रही थी। रुक्मिणी, सत्यभामा, जामवंती आदि भगवान् की महारानियां श्रीनारदजी तथा और ऋषियों को बुलाकर हमेशा कथा सुनती रहती थी। उन्हें दूसरी बात अच्छी नहीं लगती थी। जब तक श्रीठाकुरजी सामने हैं, तब तक दर्शन करें और जब श्रीठाकुरजी सभा में चले जायें तो कथा सुनें, दूसरी कोई बात ही नहीं। गोपियों के शिष्य श्री उद्धव जी क्यों बने? इसीलिए बने कि- वे आये थे तीन महीने के लिये और रह गये छः महीने, लेकिन छः महीने में लाखों गोपियों के बीच में किसी एक भी गोपी के मुख से एक मिनट के लिये भी उन्होंने संसार की बातें नहीं सुनी। इससे बड़ा योग और क्या हो सकता है ? जिनके मुख से दूसरा नाम संसार का निकलता ही नहीं, जिनके श्रवण श्रीकृष्ण का चरित्र छोड़कर दूसरी बात सुनना ही नहीं चाहते, इससे बड़ा ज्ञानी और योगी कौन होगा ? श्रीउद्धवजी देवताओं के गुरु बृहस्पति के शिष्य थे, सामान्य दिमाग नहीं था उनका, भगवान श्री कृष्ण के सखा थे और अपने ज्ञान का अभिमान लेकर वृंदावन गये थे लेकिन छः महीने परीक्षण करने के बाद वे समझ गये, कि भगवान का मूर्तमान प्रेम ही ब्रज और ब्रज वासियों के रूप में दृष्टिगोचर हो रहा है। उद्धव ने चरणों में गिरकर, हाथ जोड़कर, गोपांगनाओं से कहा कि- आप तो मेरी गुरु हो। आप लोगों ने वो भक्ति प्रारंभ की है जो बड़े-बड़े मुनियों को दुर्लभ है और आपने मुझे विरह का ज्ञान देकर मेरे ऊपर महान उपकार किया है। मेरे पास सूखा ज्ञान था लेकिन प्राण प्यारे श्री कृष्ण का विरह नहीं था। विरह के बिना ज्ञान, ध्यान, पूजा-पाठ सब शून्य है। संत महापुरुष कहा करते हैं कि- गोपांगनाओं के प्रेम पर सनकादि, शुकादि आदि ऋषियों के ज्ञान को नोन-राई की तरह न्योछावर किया जा सकता है। जब तक जीवन में विरह नहीं आ जाता, प्रेम नहीं आ जाता, तब तक ज्ञान का कोई बहुत अधिक महत्व नहीं है, अर्थात् ऐसे ज्ञान से प्रभु प्राप्ति होने वाली नहीं है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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