लाहौली जुराबों और दस्तानों को मिली जीआई टैगिंग

हिमाचल प्रदेश। हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिले लाहौल-स्पीति की जुराबों और दस्तानों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी। लाहौली जुराबों और दस्तानों को जीआई टैग मिला है। अब कोई बाहरी संस्था या कारोबारी लाहौली उत्पादों का कारोबार नहीं कर सकेगा। परंपरागत उत्पादों को जीआई टैग मिलने से इसके अवैध व्यापार पर भी अंकुश लगेगा। साल 2019 में सेव लाहौल-स्पीति संस्था ने पारंपरिक जुराबों और दस्तानों को जीआई टैग दिलाने के लिए आवेदन किया था। करीब दो साल बाद केंद्र सरकार ने संस्था के आवेदन को स्वीकृति प्रदान की है। एचपी काउंसलिंग फॉर साइंस टेक्नोलॉजी एंड एनवायरमेंट की ओर से भौगोलिक संकेतक पर बुने हुए लाहौली जुराब और दस्तानों को पंजीकृत मालिक का दर्जा दिया गया है। सेव लाहौल-स्पीति के अध्यक्ष प्रेम कटोच ने कहा कि संस्था के सामूहिक प्रयास से पारंपरिक लाहौली उत्पादों को नई पहचान मिली है। जीआई टैग मिलने का फायदा हथकरघा कारोबार से जुड़ी महिलाओं को मिलेगा। घाटी की करीब 15 हजार से अधिक महिलाएं इस पारंपरिक कारोबार से सीधे तौर पर जुड़ी हैं। लाहौली महिलाएं इस शिल्प की रीढ़ हैं। उनके प्रयासों की बदौलत ही पारंपरिक कला को बनाए रखने में सफलता मिली है। उन्होंने कहा कि सेव लाहौल-स्पीति संस्था ने लाहौली क्रियाशील हथकरघा को विकसित करने और विपणन संबंधी मदद देने का लक्ष्य रखा है। इसका उद्देश्य केवल उच्चतम गुणवत्ता वाले उत्पादों का उत्पादन करना नहीं है। इसके साथ लाहौली कारीगरों को उचित मूल्य भी सुनिश्चित करवाना है।

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