नई दिल्ली। पूरे विश्व में वायु प्रदूषण मानव जीवन के लिए गंभीर खतरा बन गया है। इसका अनुमान इसीसे लगाया जा सकता है कि दुनिया के कई हिस्से में लोग सौ प्रतिशत प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति काफी बदतर है।
इसकी रोकथाम के लिए तत्काल अपेक्षित प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। क्योंकि वायु प्रदूषण का मौजूदा स्तर यथावत रहा तो उत्तर भारत में रह रहे 51 करोड़ लोगों का जीवन 7.6 साल कम हो सकता है। शिकागो विश्वविद्यालय में एनर्जी पालिसी इंस्टीट्यूट (ईपीआईसी) के वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक की रिपोर्ट न सिर्फ चौंकाने वाली है बल्कि बेहद चिंताजनक है।
इसे गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है। इस अध्ययन रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वर्ष 2013 से दुनिया के प्रदूषण में वृद्धि में करीब 44 प्रतिशत योगदान भारत का है। साल 1998 के बाद से भारत में औसत वार्षिक वायु प्रदूषण में 61.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो गम्भीर चिंता का विषय है।
रिपोर्ट के अनुसार बंगलादेश के बाद भारत दुनिया का सबसे प्रदूषित देश है जो भारत के जीवन प्रत्याशा को पांच साल कम कर देता है। देश के दस सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में दिल्ली एनसीआर शीर्ष पर है। रिपोर्ट में दिल्ली को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया है जो लोगों के जीवन का दस साल छीन रहा है।
अब बड़ा प्रश्न यह है कि इसका जिम्मेदार कौन है। इसके लिए हमें अपने गिरेबां में झांक कर देखने की जरूरत है। जीवन शैली में बदलाव के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है। इसके साथ ही पराली जलाने, यातायात, उद्योगों से अत्यधिक कार्बन का उत्सर्जन वायु को जानलेवा बना रहे हैं। कल- कारखाने जो प्रदूषण फैला रहे हैं उन पर नियंत्रण जरूरी है। वायु प्रदूषण के खतरे को कानून से नहीं, आम आदमी के प्रयास से रोकना होगा। इसके लिए समाज के हर वर्ग का सहयोग अपेक्षित है।