माया का प्रबल शस्त्र है मोह: दिव्य मोरारी बापू

पुष्‍कर/राजस्‍थान। सत्संग के अमृतबिंदु- विभीषण है जीव, सोने की लंका अर्थात् शरीर, सोने की लंका समुद्र में है, मनुष्य का जीवन भी संसार सागर में है। विभीषण, रावण के अधिकार में है। रावण के आश्रित है। जीव भी मोह के आश्रित है, जीव पर मोह का शासन है। मोह जैसा चाहता है, जीव को वैसा ही करना पड़ता है।

जब तक जीव मोह से हटकर ईश्वर की शरण में नहीं आता, तब तक जीव का कल्याण नहीं होता। जीव को मोह छोड़ना पड़ेगा। मोह की निवृत्ति हुए बिना शांति का दर्शन नहीं हो सकता। मोह भजन में बाधक है। विभीषण को हर तरह से छूट है। रावण ने विभीषण से कहा कि भाई, तुम जो चाहो कर सकते हो,

बस एक काम नहीं करना, राम का भजन नहीं करना। मोह भजन का विरोधी है। परिवार वाले भी यही कहते हैं, सब कुछ करो, लेकिन ये सत्संग साधना छोड़ दो। माया का प्रबल शस्त्र है मोह। श्री रामचरितमानस के उत्तरकांड में उत्तरकांड में लिखा है कि मोह सकल व्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।

समस्त व्याधियों की जड़ है मोह! मैं और मेरा! इसी का नाम है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा,  (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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