Supreme Court news updates: बिहार की जाति सर्वेक्षण मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह बिहार सरकार को जाति सर्वेक्षण के तहत एकत्रित डेटा या निष्कर्षों को प्रकाशित करने से नहीं रोक सकता। कोर्ट ने कहा कि जब तक कि राज्य सरकार की ओर किसी संवैधानिक अधिकार के उल्लंघन या उसकी ओर से सक्षमता की कमी का प्रथम दृष्टया मामला न हो तब तक हम उसे डेटा प्रकाशित करने से नहीं रोक सकते। आपको बता दें कि याचिकाकर्ताओं के एक समूह ने एक अगस्त को पटना उच्च न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। पटना हाई कोर्ट ने अपने आदेश में बिहार सरकार को जाति सर्वेक्षण पूरा करने की मंजूरी दे दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि लोगों से उनकी जाति का खुलासा करने के लिए कहने में निजता का उल्लंघन क्या है? याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह अभ्यास स्पष्ट रूप से निजता मामले में शीर्ष अदालत के 9-न्यायाधीशों के फैसले का उल्लंघन है, जिसमें यह कहा गया था कि राज्य किसी कानून के समर्थन के बिना व्यक्तियों की निजता का अतिक्रमण नहीं कर सकता।
दो-न्यायाधीशों की पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने पूछा, ‘बिहार जैसे राज्य में, पड़ोसियों को एक दूसरे की जाति के बारे में पता होता है…इन 17 प्रश्नों में से कौन सा गोपनीयता पर हमला करता है? यह अभ्यास एक कार्यकारी आदेश के बाद किया जा रहा है।’
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने 1 अगस्त के पटना उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की, ‘जब तक प्रथमदृष्टया कोई उल्लंघन का मामला न हो, हम कुछ भी नहीं रोकेंगे… कुछ कानूनी मुद्दे हैं जिन पर बहस हो सकती है। यह प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और उच्च न्यायालय का फैसला उनके पक्ष में आ चुका है। ‘ जैसे ही मामला उठाया गया, याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह ने पीठ से अनुरोध किया कि जब तक अदालत मामले पर अंतिम निर्णय नहीं ले लेती, तब तक सर्वेक्षण के प्रकाशन पर रोक लगा दी जाए। उन्होंने कहा कि ‘सारा डेटा पहले ही अपलोड किया जा चुका है। हम अदालत से सर्वेक्षण के प्रकाशन को रोकने का अनुरोध कर रहे हैं।’