Chandrayaan 3 launch: भारत चंद्रयान-3 को चांद पर भेजने के लिए पूरी तरह से तैयार है। जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान-3 आज दिन शुक्रवार को लॉन्च किया जाएगा। इसे इसरो के ‘बाहुबली रॉकेट’ लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (एलवीएम-3) से लॉन्च किया जाएगा। चंद्रयान-3 मिशन का उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग का है। भारत का यह तीसरा चंद्र मिशन है, जबकि चंद्र सतह पर सुरक्षित लैंडिंग का दूसरा प्रयास है। यदि यह लॉन्चिगं सफल रहा तो ऐसा करने वाला भारत चौथा देश बन जाएगा।वहीं, इससे पहले केवल तीन ही देश अमेरिका, रूस और चीन चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करा सके हैं।
मिशन 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा केन्द्र से उड़ान भरेगा और अगर सब कुछ योजना के अनुसार हुआ तो 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा पर उतरेगा। मिशन चंद्रमा के उस हिस्से तक लॉन्च होगा, जिसे डार्क साइड ऑफ मून कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह हिस्सा पृथ्वी के सामने नहीं आता।
भारत का यह मिशन चंद्रयान-2 की क्रैश लैंडिंग के चार साल बाद भेजा जा रहा है। चंद्रयान-3 मिशन सफल होता है, तो अंतरिक्ष के क्षेत्र में ये भारत की एक और बड़ी कामयाबी होगी। बताया जा रहा है कि चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। इसमें एक प्रणोदन मॉड्यूल, एक लैंडर और एक रोवर होगा। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया है।
क्या है एलवीएम?
भारत का उन्नत ‘बाहुबली’ रॉकेट एलवीएम-3 चंद्रयान-3 मिशन को लॉन्च करेगा। बीते बुधवार को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में चंद्रयान-3 युक्त एनकैप्सुलेटेड असेंबली को एलवीएम:3 के साथ जोड़ा गया था।
जानकारी के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन में 3921 किलोग्राम वजनी उपग्रह लगभग 400,000 किलोमीटर का सफर तय करेगा। रॉकेट का वजन 642 टन है, जो लगभग 130 एशियाई हाथियों के वजन के बराबर है। इसकी ऊंचाई 43.5 मीटर है, जो कुतुब मीनार (72 मीटर) की आधी से अधिक ऊंचाई है।
क्यों जोड़ा गया चंद्रयान-3 को LVM3 के साथ?
रॉकेटों में शक्तिशाली प्रणोदन प्रणालियां होती हैं जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव पर काबू पाकर उपग्रहों जैसी भारी वस्तुओं को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए जरूरी भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करती हैं। LVM3 भारत का सबसे भारी रॉकेट है। प्रक्षेपण यान आठ टन तक पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षाओं (LEO) तक ले जा सकता है, जो पृथ्वी की सतह से लगभग 200 किमी दूर है। हालांकि, जब भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षाओं (GTO) की बात आती है, तो यह केवल लगभग चार टन भार ले जा सकता है। भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा पृथ्वी से काफी आगे लगभग 35,000 किमी तक स्थित है।
LVM3 ने 2014 में अंतरिक्ष में अपनी पहली यात्रा की और 2019 में चंद्रयान -2 भी ले गया। इस साल मार्च में यह LEO में लगभग 6,000 किलोग्राम वजन वाले 36 वनवेब उपग्रहों को ले गया, जो कई उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाने की अपनी क्षमताओं को दर्शाता है। यह दूसरी बार था, जब LVM3 ने व्यावसायिक लॉन्च किया। पहली बार अक्तूबर 2022 में इसने वनवेब इंडिया-1 मिशन को लांच किया था।