Delhi: गृह मंत्रालय ने ‘मॉडल प्रिजन मैनुअल 2016’ और ‘मॉडल प्रिज़न्स एंड करेक्शनल सर्विसेज एक्ट, 2023’ का हवाला देते हुए कहा है कि उच्च-जोखिम कैदियों और उग्रवादियों को अन्य कैदियों से अलग रखने के लिए विशेष सुरक्षा वाले कारागारों की व्यवस्था आवश्यक है. मंत्रालय ने चेताया कि जेलों में बंद कट्टरपंथी बंदी अन्य कैदियों का ब्रेनवॉश कर उन्हें गलत दिशा में मोड़ रहे हैं. यह प्रवृत्ति अब देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुकी है.
‘डि-रेडिकलाइजेशन’ की प्रक्रिया जरुरी
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के गृह सचिवों को परामर्श जारी करते हुए कहा है कि कारागारों में बंद कमजोर मानसिकता वाले बंदियों में उग्र विचारधारा के प्रसार को रोकना और ऐसे बंदियों को मुख्यधारा में लाने के लिए ‘डि-रेडिकलाइजेशन’ की प्रक्रिया जरूरी है. मंत्रालय का मानना है कि यह कदम सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के साथ-साथ देश की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करेगा.
जेलों में निगरानी की कमी से कट्टरपंथ बढ़ने का खतरा
दरअसल, जेलों में मौजूद सामाजिक अलगाव और निगरानी की कमी से कट्टरपंथ बढ़ने का खतरा माना जा रहा है. कुछ मामलों में कैदी, जेल कर्मचारियों, अन्य कैदियों और बाहर के लोगों पर हमला करने की योजना बनाते हैं. इसको एक गंभीर चुनौती मानते हुए गृह मंत्रालय ने निर्देश जारी किए हैं.
कैदी के जेल से छूटने के बाद भी लिया जाएगा फॉलोअप
गृह मंत्रालय के निर्देशों के मुताबिक स्क्रीनिंग में मानसिक, सामाजिक और स्वास्थ्य मूल्यांकन भी शामिल किया जाएगा. कट्टरपंथ को रोकने के लिए काउंसलिंग, शिक्षा और पुनर्वास कार्यक्रम पर भी जोर दिया जाएगा. इन सबके अलावा कैदी के जेल से छूटने के बाद भी समाज से फिर से जुड़ने को लेकर फॉलोअप निगरानी सिस्टम के तहत कार्य किया जाएगा.
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी दिशा निर्देशों में कहा गया है कि सुधारात्मक उपायों और व्यावहारिक पुनर्वास से चरमपंथ की मानसिकता को बदला जा सकता है. इसको ध्यान में रखते हुए गृह मंत्रालय ने तमाम कदम उठाने के लिए आवश्यक दिशा निर्देश जारी किए हैं.
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