New Delhi: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने जजों का रिटारमेंट के तुरंत बाद सरकारी पद स्वीकार करने या चुनाव लड़ने पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रथाएं गंभीर नैतिक सवाल उठाती हैं। इससे न्यायपालिका में जनता का विश्वास कम होता है। चीफ जस्टिस बीआर गवई ने यूनाइटेड किंगडम के सुप्रीम कोर्ट में एक गोलमेज चर्चा में यह बात कही। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रथाओं से ऐसी धारणा बन सकती है कि न्यायिक फैसले भविष्य की राजनीतिक या सरकारी लाभ की अपेक्षाओं से प्रभावित थे।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के बारे में संदेह
सीजेआई गवई ने कहा: “यदि कोई जज रिटायर होने के तुरंत बाद सरकार के साथ कोई अन्य नियुक्ति लेता है, या फिर चुनाव लड़ने के लिए बेंच से इस्तीफा देता है तो यह महत्वपूर्ण नैतिक चिंताओं को जन्म देता है और सार्वजनिक जांच को आमंत्रित करता है। एक जज द्वारा राजनीतिक कार्यालय के लिए चुनाव लड़ने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के बारे में संदेह पैदा हो सकता है, क्योंकि इसे हितों के टकराव या सरकार का पक्ष लेने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है। रिटायरमेंट के बाद की ऐसी व्यस्तताओं का समय और प्रकृति न्यायपालिका की ईमानदारी में जनता के विश्वास को कमजोर कर सकती है, क्योंकि इससे यह धारणा बन सकती है कि न्यायिक निर्णय भविष्य की सरकारी नियुक्तियों या राजनीतिक भागीदारी की संभावना से प्रभावित थे।”
स्वतंत्रता, अखंडता और निष्पक्षता के साथ संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखना
सीजेआई गवई ने कहा कि उनके कई सहयोगियों ने यह संकल्प लिया कि वे रिटायरमेंट के बाद कोई पद या राजनीतिक भूमिका स्वीकर नहीं करेंगे। उन्होंने कहा “यह प्रतिबद्धता न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता को बनाए रखने का एक प्रयास है।” अपने स्पीच सीजेआई गवई ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायपालिका को न केवल न्याय प्रदान करना चाहिए, बल्कि उसे एक ऐसी संस्था के रूप में भी देखा जाना चाहिए, जो सत्ता के सामने सत्य को रखने का हकदार है।
न्यायिक स्वतंत्रता की सार्वजनिक धारणा में महत्वपूर्ण विचार
कॉलेजियम प्रणाली की खामियों का समाधान न्यायिक स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं आना चाहिए, भारत के संविधान के अनुच्छेद 50 द्वारा परिकल्पित शक्तियों का पृथक्करण और एक स्वतंत्र नियुक्ति प्रक्रिया न्यायिक स्वतंत्रता की सार्वजनिक धारणा में महत्वपूर्ण विचार हैं। सीजेआई गवई ने कॉलेजियम प्रणाली के बारे में विस्तार से बताया। यह स्वीकार करते हुए कि कॉलेजियम प्रणाली आलोचनाओं से रहित नहीं है, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समाधान न्यायिक स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं आना चाहिए।
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