नई दिल्ली। भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में इस समय राजनीतिक और आर्थिक दोनों ही हालत खराब होती जा रही है। बेतहाशा महंगाई और बेरोजगारी से वहां की स्थिति बद से बदत्तर होती जा रही है और श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के खिलाफ जनाक्रोश चरम पर पहुंच गया है।
हालत यह है कि देश गृह युद्ध के हालत पर पहुंच गया है, हालांकि भारत श्रीलंका की हर तरह से मदद कर रहा है, लेकिन वहां की राजनीतिक अस्थिरता से मदद पहुंचाने की भारत की कोशिशों को बड़ा झटका लग सकता है। श्रीलंका को बचाने के लिए वैश्विक मदद जरूरी हो गयी है।
यहां दोबारा आपातकाल लगाए जाने के बाद भी हिंसा और अराजकता का तांडव कम नहीं हो पा रहा है। श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिन्दा राजपक्षे के इस्तीफा देने के बाद सरकार समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा शुरू हो गयी है। सरकार समर्थकों और विरोधियों के हमले में सांसद सहित पांच लोगों की मौत हो गयी और दो सौ से अधिक लोग घायल हुए हैं।
इधर विरोधियों ने प्रधानमंत्री और कई मंत्रियों के घरों को आग के हवाले कर दिया, जिससे वहां की स्थिति भयावह हो गई है। हालात को काबू करने के लिए सेना ने मोर्चा सम्भाल लिया है। इसके बावजूद वहां के हालात दिन-प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं और गृहयुद्ध की स्थिति बन गयी है।
सर्वदलीय अन्तरिम सरकार के गठन के लिए कई मंत्रियों ने सरकार से इस्तीफा दे दिया है, लेकिन श्रीलंका के राष्ट्रपति की हठधर्मिता से स्थिति में सुधार की गुंजाइश कम है। श्रीलंका की हालत तो इतनी खराब हो चुकी है कि वह किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसी को कर्ज का ब्याज भी चुकाने की स्थिति में नहीं है।
अब इस हालत का फायदा चीन न उठाये, इसके लिए भारत को सतर्क दृष्टि रखनी पड़ेगी। चीन अपने भारी-भरकम कर्ज की अदायगी के लिए वहां की एजेंसियों पर मनमाफिक दबाव बना सकता है।