अब जम्मू-कश्मीर में आम चुनाव की हलचल…

श्रीनगर। माना जा रहा है कि इस साल के अंत में जब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होंगे, उसी समय जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव भी कराए जा सकते हैं। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में हाल में पंचायत चुनाव बिना हिंसा के संपन्न हो गये। जिला पंचायत चुनाव हो चुके हैं।

डीडीसी के चुनाव हो चुके हैं और अब परिसीमन पूरा होने के बाद राज्य में चुनावों की तारीखों का ऐलान हो सकता है। जम्मू-कश्मीर प्रदेश को लेकर परिसीमन आयोग ने अपनी रिपोर्ट चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को सौंपी है। इसके तहत जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की कुल सीटें 83 से बढ़कर 90 हो गयी हैं।

इनमें से जम्मू क्षेत्र में सीटों की कुल संख्या अब 43 हो गयी है। कश्मीर क्षेत्र में कुल 47 सीटें हो गई हैं। दरअसल 1995 के बाद हुए परिसीमन में वर्ष 2011 की जनगणना को आधार बनाया गया है। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में जून 2018 से राष्ट्रपति शासन लागू है। जम्मू-कश्मीर अब विधानसभा के साथ केंद्र शासित प्रदेश है।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने और उससे लद्दाख को अलग कर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद केंद्र सरकार ने नए सिरे से परिसीमन कराने का फैसला लिया था। इसको लेकर मार्च 2020 में जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया गया।

मुख्य चुनाव आयुक्त और जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी को इसका सदस्य बनाया गया। जम्मू-कश्मीर के सभी लोकसभा सदस्यों को भी इसमें शामिल किया गया। आयोग ने इन सदस्यों के साथ जम्मू-कश्मीर का दौरा कर स्थानीय लोगों से भी सुझाव लिये। इस दौरान आयोग को 16 सौ से अधिक सुझाव मिले थे।

परिसीमन आयोग की रिपोर्ट से बड़ा बदलाव यह है कि जम्मू संभाग में विधानसभा सीटों की संख्या 37 से बढ़कर 43 हो गयी हैं, जबकि कश्मीर के लिए एक विधानसभा सीट बढायी गई है। कहा जा रहा है कि जम्मू संभाग में पहले से मजबूत भाजपा और मजबूत होकर उभरेगी।

लद्दाख के अलग होने के बाद जम्मू-कश्मीर की बची पांच लोकसभा सीटों का परिसीमन आयोग ने नये सिरे से पुनर्गठन किया है। इसके तहत सभी लोकसभा सीटों का भौगोलिक क्षेत्र बदला गया है। पांचों लोकसभा सीटों में प्रत्येक में विधानसभा की 18-18 सीटें रखी गयी हैं।

आयोग के मुताबिक परिसीमन में जनसंख्या के साथ ही भौगोलिक, सामाजिक ताने बाने और प्रशासनिक जुड़ाव को भी ध्यान में रखा गया है। पहली बार अनुसूचित जनजातियों के लिए नौ सीटें आरक्षित की गयी हैं, इनमें से छह सीटें जम्मू और तीन सीटें कश्मीर के लिए निर्धारित हैं। पहली बार कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीटें रिजर्व करने की सिफारिश की गयी है।

वहीं विस्थापित शरणार्थियों के लिए भी कुछ सीटें आरक्षित करने की सिफारिश की गई है। परिसीमन में कई विधानसभा सीटों के नाम बदलने की सिफारिश है। रियासी जिले में गूल-अरनास निर्वाचन क्षेत्र को नयी सीट श्री माता वैष्णोदेवी के रूप में नया रूप दिया गया है। जम्मू क्षेत्र में पद्दर विधानसभा सीट का नाम बदलकर पद्दर-नागसेनी, कठुआ उत्तर को जसरोटा,

कठुआ दक्षिण को कठुआ, खौर को छांब, महोरे को गुलाबगढ़, तंगमर्ग को गुलमर्ग, जूनीमार को जैदीबाल, सोनार को लाल चौक और दरहल का नाम बुढ़हल किया गया है। जम्मू-कश्मीर में 1995 में आखिरी परिसीमन के बादसे वहां जिलों की संख्या 12 से बढ़कर 20 हो चुकी है। वहीं राजनीतिक पंडित कयास लगा रहे हैं कि इससे घाटी की सियासत में बदलाव आयेगा।

सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित परिसीमन आयोग ने इसको लेकर अधिसूचना भी जारी कर दी है। फिलहाल 2018 के बाद जम्मू- कश्मीर में सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली के साथ अब इसे राज्य का दर्जा मिल सकेगा।

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