जम्मू-कश्मीर। अनुच्छेद 370 हटने के बाद 31 अक्टूबर 2019 को पुनर्गठन एक्ट लागू होने के दो साल के भीतर जम्मू-कश्मीर में काफी कुछ बदल गया है। धरातल पर व्यवस्था में कई बदलाव हुए हैं। जम्मू-कश्मीर के द्वार सबके लिए खुल गए। प्रशासन में पारदर्शिता के साथ भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगा। वर्षों पुरानी दरबार मूव की परंपरा समाप्त हो गई। प्रशासन में बैठे पाकिस्तान परस्त व दागी कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने की शुरूआत हुई। सरकार ने पहली बार देश विरोधी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई का साहस दिखाया। पुनर्गठन का पहला साल केंद्रीय कानून लागू करने और व्यवस्थागत ढांचे को दुरुस्त करने में बीता। प्रदेश के लोगों के जमीन-रोजगार के हक को सुरक्षित रखने के लिए डोमिसाइल व्यवस्था की गई। सत्तर सालों से नागरिकता से वंचित रहे वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी, गोरखा समाज व वाल्मीकि समाज को भी डोमिसाइल मिला। इनके बच्चे भी तमाम सरकारी पदों के लिए पात्र हुए। वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी संघर्ष समिति के अध्यक्ष लब्बा राम गांधी व गोरखा समाज की अध्यक्ष करुणा खेत्री का कहना है कि 370 का हटना उनके लिए वरदान रहा और राज्य के पुनर्गठन ने सपने को साकार करने का रास्ता दिया। देशभर में अनुसूचित जनजाति के लोगों को वन अधिकार हासिल थे लेकिन यहां पहली बार अनुसूचित जनजाति के लोगों व गुज्जर बक्करवालों को यह हक मिला। दूसरे राज्यों में शादी करने वाली महिलाओं और उनके पति को भी जम्मू-कश्मीर में जमीन व रोजगार का हक देकर सरकार ने भेदभाव को खत्म किया। आतंकवाद के दौर में घाटी में अपनी संपत्तियों को औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर कश्मीरी पंडितों को भी उनका हक दिलाने की तीन दशक बाद पहल हुई। इस बारे ऑनलाइन पोर्टल पर अब तक छह हजार शिकायतें मिली हैं। राज्य सरकार ने दो हजार मामलों का निस्तारण कर दिया है। महाजन, खत्री व सिख समुदाय को कृषि भूमि बेचने का अधिकार दिया। लंबे समय से इन समुदाय के लोग इस अधिकार से वंचित थे।