निष्काम कर्म ही है बंधन से मुक्त: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सच्ची विद्या क्या है? धर्मशास्त्र कहते हैं कि-‘ विद्याऽऽत्मनि भिदावाचो ।’ अर्थात् वास्तविक विद्या वही है जिसके द्वारा आत्मा और परमात्मा का भेद मिट जाए। इन दोनों की एकात्मता का बोध ही विद्या है और वही आध्यात्मिक विद्या कही जाती है। भगवान् श्री कृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं कि- समस्त विद्याओं में अध्यात्म विद्या मैं हूँ।’ आध्यात्म विद्या विद्यानाम् ।’ श्री मनु जी महाराज मनुस्मृति में कहते हैं कि सत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये। अर्थात् कर्म वही श्रेष्ठ है जो बंधन का हेतु न बने। निष्काम कर्म ही बंधन से मुक्त है। विद्या वही है जो मुक्ति में सहायक है। शेष कर्म केवल श्रम मात्र है और शेष विद्या पेट पालने का माध्यम है। अध्यात्म विद्या को छोड़कर शेष समग्र विद्यायें व्यवसायिक मात्र हैं। विद्या-विद् ज्ञान धातु से बनी है, ‘ विद् ‘ जिससे ज्ञान हो। विद्या वही है जो जीव और ब्रह्म की एकता को स्थापित करे। ‘ जीवो ब्रह्मैव केवलम् ‘ । जीव ब्रह्म को एकत्व बनाने वाली विद्या और दोनों में भेद रखने वाली अविद्या है। अविद्या अद्वैत को द्वैत बना कर खड़ा कर देती है और अध्यात्म विद्या द्वैत को नष्ट कर अद्वैत या एकत्व का बोध कराती है। इसीलिए धर्मशास्त्र समग्र विद्याओं में अध्यात्म विद्या को सर्वोत्तम मानते हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा,(उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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