गाजीपुर। पटना-मुगलसराय रेल प्रखंड के दिलदारनगर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या 3 व 4 के बीच स्थित सायर माता मंदिर भक्तों के कल्याण तथा वांछित मनोकामनाओं की पूर्ति के कारण आस्था का प्रतीक हैं। वैसे तो क्षेत्र तथा दूर-दराज से माता के दरबार में भक्तों द्वारा हाजिरी लगाने का क्रम वर्ष पर्यत्न चलता है,
किंतु शारदीय तथा वासंतिक नवरात्रि में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ माता के दरबार में उमड़ पड़ती है। आस्था की पर्याय बन चुकी लोक देवी माता सायर की शक्ति के आगे अंग्रेज अधिकारी को भी नतमस्तक होना पड़ा, जब प्लेटफार्म संख्या 4 की रेल पटरी बिछाई जा रही थी।
बुजुर्गों तथा लोक प्रचलित मान्यता के अनुसार सन 1880 में ब्रिटिश शासन काल में जब प्लेटफार्म संख्या 4 का लूप लाईन विछाने का प्रस्ताव आया, तो तत्कालीन रेल इंजीनियर ने राह में पड़ने वाले झाड़ी और जंगल को साफ करने का आदेश मजदूरों को दिया।
जंगल-झाड़ साफ करने के क्रम में एक नीम का पेड़ सामने पड़ा, जिसके नीचे माता की एक छोटी सी पिंडी थी, जिसको देख मजदूर सहम गये और इस बात की जानकारी अंग्रेज इंजीनियर को दी। वहीं माता ने स्वप्न दिखाया व नीम का पेड़ नहीं काटने का निर्देश इंजीनियर तथा मजदूरों को दिया, लेकिन जिदपर अड़ा इंजीनियर पेड़ कटवाने पर अड़ा रहा।
दूसरे दिन मजदूरों ने नीम का पेड़ काटने के लिए कुल्हाड़ी से प्रहार किया, तो लाल रक्तनुमा द्रव्य बहता देख स्थानीय मजदूर भाग खड़े हुए। तब इंजीनियर ने दूसरे मजदूरों से नीम का पेड़ कटवा दिया। जिसका परिणाम यह निकला कि माता के कोप से तीनों मजदूर तो मरे ही साथ में अंग्रेज इंजीनियर का पांच वर्षीय पुत्र की भी मौत हो गई।
जिसकी कब्र आज भी पीडब्लूआई वंगला परिसर में मौजूद है। इस पर भी माता का प्रकोप शांत नहीं हुआ, अंग्रेज इंजीनियर भी गंभीर रुप से बीमार होकर बिस्तर पर पड़ गया। इस घटना से घबराई इंजीनियर की पत्नी ने स्थानीय रेल कर्मचारियों तथा लोगों से राय-मशविरा किया और लोगों द्वारा बताये जाने पर माता के स्थान पर पहुंचकर क्षमा मांगी।
तब माता ने स्वप्न में रेलवे लाईन टेढ़ा बिछाने और उक्त स्थान पर चौरा बनाने का आदेश दिया। वैसा ही करने पर अंग्रेज इंजीनियर की जान बची और उसने भी माता की चौरा पर मत्था टेक माफी मांगी। माता के मंदिर की देख-रेख ग्राम निरहू के पुरा के जमुना यादव के वंशज आज भी करते आ रहे हैं।
मां सायर के दरबार में सच्चे मन से मांगी गयी हर मुराद पूरी होती है, जिसका प्रमाण है माता के दरबार में टांगे गये सैकड़ों छोटे-बड़े घंटे और फर्स पर टांके गये चांदी के सिक्के। शारदीय तथा वासंतिक नवरात्रि में बिहार, बंगाल तथा झारखंड तक के लोग मां के दर्शन के लिए यहां आते हैं। इस प्रकार लोगों के बीच आज भी आस्था की केंद्र बनी हुई हैं सायर माता।