बेकसूर जनता आखिर क्यों है दुखी…?
नई दिल्ली। पड़ोसी देश श्रीलंका में इन दिनों महंगाई को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। वहां का विदेशी मुद्रा लगभग समाप्त हो चुका है। हर सामान के भाव आसमान पर है। कर्ज के बोझ से दबे श्रीलंका के दिवालिया होने का खतरा बढ़ गया है। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार इस समय अपने ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर यानी 1.2 बिलियन अमेरिकी डालर तक पहुंच गया है। केंद्रीय बैंक ने अपने पास रखे आधे से अधिक गोल्ड रिजर्व का 54.1% हिस्सा विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूती देने के लिए इस्तेमाल कर चुका है। खास बात यह है कि ऐसा क्या हुआ जिससे श्रीलंका इतनी बड़ी आर्थिक संकट में फंसा पड़ा हुआ है। श्रीलंका का वर्तमान संकट वहां के नेताओं के भ्रष्टाचार, आर्थिक प्रबंधन, चीन की कुटिल चाल और अलोकतांत्रिक सरकार की गलत नीतियों का नतीजा है। वहां की जनता को बेकसूर होने के बाद भी दुख सहना पड़ रहा है। अब उसकी नजर अन्य देशों से मिलने वाली मदद पर टिकी हुई है जिसमें भारत से उसकी अधिक उम्मींद है।
सरकारी खजाना खाली है। घरेलू और विदेशी कर्ज चुकाने के लिए करीब 7:30 अरब डालर की आवश्यकता है। आर्थिक संकट से कठिनाइयां बेहद असहनीय हो रही हैं और जनता लगातार सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रही हैं। श्रीलंका के आर्थिक संकट में फंसे होने में वहां चल रहे राष्ट्रपति शासन प्रणाली की भूमिका को ही प्रमुख रुप से माना जा सकता है। 1978 से ही श्रीलंका में राष्ट्रपति शासन चल रहा है। इसमें सरकारी तंत्र पर नियंत्रण की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां के संसद के सदस्य राष्ट्रपति और उनकी नीतियों का आमतौर पर किसी तरह से प्रतिरोध नहीं करते। इसके बदले में उन्हें शराब, रेत खनन जैसे महत्वपूर्ण आय वाले संसाधनों के लाइसेंस मामूली दामों पर उपलब्ध कराए जाते हैं। इसके बाद सांसद थोड़ी सी चालाकी दिखा कर इन लाइसेंसो के बदले में अपने बैंक खातों में बड़ी रकम जमा करते हैं।
श्रीलंका में सरकारी तामझाम में काफी रकम खर्च होती है। राष्ट्रपति से लेकर मंत्रियों, नेताओं, अफसरों की गाड़ियों, बंगले, पूर्ण सुरक्षा पर बहुत बड़ी रकम खर्च होती है। इससे सरकारी खजाने पर बराबर भारी बोझ पड़ता रहता है। इस समय श्रीलंका अपने इतिहास के सबसे भीषण आर्थिक संकट से गुजर रहा है। वहां पेट्रोल-डीजल जैसे बेहद अहम ईंधन समाप्त हो चुके हैं। बिजली उत्पादन नहीं हो पा रहा है और जरूरी चीजों के आयात के लिए सरकार के पास पैसे नहीं बचे हैं। इससे सभी चीजों के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। धीरे-धीरे जैसे वहां का सब कुछ खत्म हो रहा है। ईंधन की किल्लत से बसें बंद कर दी गई हैं। गैस नहीं मिल रहा है जिससे घरों में खाना बनाने पर भी प्रभाव पड़ रहा है। ढाई करोड़ घरों में बिजली की आपूर्ति ठप है। कारखाने और पावर प्लांट बंद हो चुके हैं। श्रीलंकाई नागरिकों का कहना है कि देश में यह सबसे खराब हालत है।