खतरे में है विदेशों से मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों का भविष्य…

नई दिल्‍ली। यूक्रेन और चीन सह‍ित विदेशों से मेडिकल की पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्रों का भविष्य अधर में फंसा हुआ है। अपनी जान बचाने के बाद उन्हें सबसे बड़ी चिंता सता रही है वह है अपना करियर और डिग्री बचाने की।
जहां एक ओर रूस और यूक्रेन में जारी जंग के कारण यूक्रेन में पढ़ाई कर रहे भारतीयों को स्वदेश लौटना पड़ रहा है।
वहीं चीन से दो वर्ष पहले कोरोना महामारी के कारण भारत लौटे स्टूडेंट भी अभी तक वापस चीन नहीं लौट पाए हैं।
इधर रूस और यूक्रेन की जंग कब खत्म होगी? कब वहां पहले की तरह हालात सामान्य होंगे? कब ये भारतीय छात्र वापस यूक्रेन जाएंगे? तथा इनकी पढ़ाई दोबारा कब शुरू होगी?
पढ़ाई में लंबा गैप आने के कारण क्या इनकी डिग्रियां बेकार हो जाएंगी? इन सब सवालों के बारे में अभी कोई भी जवाब देने की स्थिति में नहीं है। यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई छह वर्ष में पूरी होती है। इसके बाद स्टूडेंट्स को एक वर्ष अनिवार्य इंटर्नशिप करनी पड़ती है।
फिर भारत में प्रैक्टिस करने और लाइसेंस प्राप्त करने हेतु एफएमजीई यानी फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम के लिए पात्रता हेतु एक वर्ष की सुपरवाइज्ड इंटर्नशिप भी करनी पड़ती है। इनके बाद एफएमजी एग्जाम क्वालीफाई करना पड़ता है। इस एग्जाम को क्वालीफाई करने के लिए एमबीबीएस में दाखिले के बाद से अधिकतम 10 वर्ष की समय-सीमा होती है।
जो छात्र यूक्रेन से पढ़कर आते हैं उनके सात वर्ष वहां पूरे हो चुके होते हैं। एक साल देश में इंटर्नशिप और एफएमजी के लिए कोचिंग या तैयारी भी करनी पड़ती है। तो आठ वर्ष पूरे हो जाते हैं। फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम को क्वालीफाई करने के लिए स्टूडेंट्स को काफी तैयारी करनी पड़ती है। इसके लिए छात्रों के पास सिर्फ दो वर्ष का समय बचता है। कई बार तो एफएमजीई को क्वालीफाई करने में दो से तीन साल भी लग जाते हैं।

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