लाइफस्टाइल। आज स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि है। स्वामी जी का जीवन हर किसी के लिए आदर्श है। इसी आदर्श को हमेशा याद रखने के लिए 4 जुलाई को हर साल स्वामी विवेकानंद स्मृति दिवस के तौर पर मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद ने महज 25 साल की उम्र में ईश्वर और ज्ञान की प्राप्ति के लिए सांसारिक मोह माया त्याग कर सन्यास ले लिया था।
उसके बाद वे गुरु रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बने जिसके बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसी ज्ञान को हर किसी के जीवन में आत्मसात करने के लिए विवेकानंद ने जीवन के सत्य और प्रेरणादायक संदेशों को प्रेषित करना शुरू किया। स्वामी विवेकानंद ने न केवल देश के युवाओं को बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सफलता का मूल मंत्र दिया लेकिन 39 साल की अल्पायु में ही अपना जीवन त्याग दिया। भारत के आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी रोचक बातें हैं, जो हर किसी के लिए बन सकता है सफलता का मूलमंत्र।
धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद का भाषण:-
11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो शहर में धर्म सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें भारत की ओर से स्वामी विवेकानंद शामिल हुए। इस धर्म सम्मेलन में विवेकानंद ने भाषण की शुरुआत हिंदी में ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’ के साथ की। उनके भाषण के बाद पूरा हॉल पूरे दो मिनट तक तालियों से गूंजता रहा। उनके भाषण की मुख्य बातें ये हैं-
-भाषण की शुरुआत में विवेकानंद ने कहा- ‘अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों’ मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के सताए लोगों को शरण में रखा है।’
– विवेकानंद ने आगे कहा, ‘मैं आपको अपने देश की प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से भी धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है।’
स्वामी विवेकानंद को मृत्यु का हो गया था आभास :-
स्वामी विवेकानंद जब काशी में थे, तो उन्हें आभास हो गया था कि अब उनकी मृत्यु होने वाली है। अपनी मृत्यु का आभास होने के बाद वह आखिरी बार काशी आए थे। उसके बाद 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद महासमाधि में लीन हो गए। काशी में एक माह प्रवास करने के दौरान उन्होंने शिकागो जाने का निर्णय लिया। उनका यह निर्णय इतिहास में दर्ज हो गया जब उन्होंने धर्म संसद में भाषण दिया।