हमें संसार से मन हटाकर भगवान में लगाने का करना चाहिए प्रयास: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि अरण्यकांड, किष्किंधाकांड एवं सुंदरकांड-अरण्यकांड-अरण्यकांड में प्रभु श्रीराम की चित्रकूट से लेकर शबरी आश्रम, पंपा सरोवर तक की लीला का वर्णन किया गया है। शबरी मां के आश्रम पहुंचकर, भगवान् नवधा भक्ति का उपदेश मां शबरी को करते हैं। उपदेश के आखिरी में भगवान श्री शबरी जी से कहते हैं कि आपमें तो नव की नव भक्ति है। इसका मतलब ये हुआ कि शबरी मां को माध्यम बना करके, नवधा भक्ति का उपदेश प्रभु श्रीराम हम भक्तों को ही करते हैं। ये नवधा भक्ति क्या है? ईश्वर को पाने की ये नवरास्ते हैं। इसमें से कोई मार्ग हम पकड़ लें, तो उससे हम ईश्वर की प्राप्ति सहज भाव से कर लेंगे। ये इस प्रकार है- संतो का संग, भगवान की कथा में प्रेम, अमान होकर संतों की सेवा, भगवान का गुणगान, गुरु मंत्र का जप, संसार से मन हटाकर भगवान में लगाने का प्रयास, सब में भगवान का दर्शन एवं संतों का विशेष सम्मान, जो कुछ प्राप्त है उसमें संतोष और दूसरों में बुराई न देखना, नववीं और आखरी भक्ति भगवान पर भरोसा है। किष्किंधाकांड एवं सुंदरकांड श्री हनुमान जी की उपासना के ये दोनों विशिष्ट सोपान हैं। सायंकाल में अगर कोई साधक किष्किंधा- कांड का पाठ करता है और सुबह पूजा पाठ के समय सुंदरकांड का पाठ कर ले, तो कुछ भी असंभव नहीं है। कठिन से कठिन कार्य भी आसान हो जाते हैं। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में ” दिव्य चातुर्मास महामहोत्सव ” के अंतर्गत शारदीय नवरात्र में श्री राम कथा के आठवें दिन सुंदरकांड पर्यंत कथा का गान किया गया। कल की कथा में लंकाविजय एवं राम राज्याभिषेक की कथा का गान किया जायेगा।

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