देवघर। बैद्यनाथ धाम देवघर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। श्रावण मास में यहां जलाभिषेक के लिए श्रद्धालु आते हैं। वैसे तो सालभर इस धाम में भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन सावन के महीने में यह भीड़ बहुत अधिक बढ़ जाती है। कहते हैं सागर से मिलने का जो संकल्प गंगा का है, वही दृढ़ निश्चय भगवान शिव से मिलने का कांवड़ियों में भी देखा जाता है।
मान्यता है कि सावन महीने में सुल्तानगंज के अजगैबीनाथ धाम में प्रवाहित उत्तरवाहिनी गंगा से कांवड़ में जल भरकर पैदल १०५ किलोमीटर की दूरी तय कर देवघर में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रसिद्ध बाबा बैद्यनाथ धाम और फिर यहां से करीब ४२ किलोमीटर दूर दुमका जिले में अवस्थित बाबा बासुकीनाथ धाम में जलार्पण और पूजा-अर्चना करने से श्रद्धालु शिवभक्तों की सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं।
इस कारण बैद्यनाथ धाम को दीवानी और बासुकीनाथ धाम को फौजदारी बाबा के नाम से जाना जाता है। बैद्यनाथ धाम की प्रसिद्धि रावणेश्वर धाम और हृदयपीठ रूप में भी है। मान्यता के अनुसार एक समय शिव भक्त रावण ने कैलाश पर्वत पर कठिन तपस्या कर तीनों लोक में विजय प्राप्त करने के लिए अपनी लंकानगरी में विराजमान होने के लिए।
औघड़दानी बाबा भोले शंकर को मना लिया। लंका जाने के लिए अनमने भाव से तैयार हुए भगवान शंकर ने रावण को वरदान देते समय यह शर्त रखी कि लिंग स्वरूप को तुम भक्तिपूर्वक अपने साथ ले जाओ, लेकिन इसे धरती पर कहीं मत रखना। अन्यथा यह लिंग वहीं स्थापित हो जायगा। रावण की इस सफलता से इंद्र सहित देवतागण चिंतित हो गये और इसका उपाय निकालने में जुट गये। रावण लिंग स्वरूप बाबा भोलेनाथ को लंकानगरी में स्थापित करने के लिए जा रहा था कि रास्ते में पड़नेवाले झारखंड के वन प्रांत में अवस्थित देवघर में शिव माया से उसे लघुशंका की तीव्र इच्छा हुई।
रावण बैजू नाम के एक गोप को लिंग स्वरूप सौंप कर लघुशंका करने चला गया। बैजू लिंग स्वरूप के भार को सहन नहीं कर सका और उसे जमीन पर रख दिया जिससे देवघर में भगवान भोलेनाथ स्थापित हो गये। लघुशंका कर लौटे रावण ने देखा बाबा भोलेनाथ जमीन पर विराजमान हो गये हैं तो वह परेशान हो गया और उन्हें जमीन से उठाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सका।
इससे गुस्से में उसने लिंग स्वरूप भोलेनाथ को अंगूठे से जमीन में दबा दिया, जिसके निशान आज भी बैद्यनाथ धाम स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंग पर विराजमान हैं। उस लिंग में भगवान शिव को प्रत्यक्ष रूप में पाकर सभी देवताओं ने उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर उसका नाम बैद्यनाथ धाम रखा। इस दिव्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन से सभी पापों का नाश और मुक्ति की प्राप्ति होती है। बैद्यनाथ धाम में द्वादश ज्योतिर्लिंग के अलावा शक्ति पीठ भी स्थापित है।