पुष्कर/राजस्थान। श्री कबीर दास जी ने भक्तिहीन षड्दर्शन एवं वर्णाश्रम धर्म को मान्यता नहीं दी, उनकी मर्यादा नहीं रखी। वे भक्ति से विरुद्ध धर्म को अधर्म ही कहते थे। उन्होंने बिना भजन के योग, यज्ञ, व्रत और दान आदि को व्यर्थ सिद्ध किया। उन्होंने अपने बीजक, रमैनी , शब्दी और साखियों में किसी मत विशेष का पक्षपात न करके सभी के कल्याण के लिये उपदेश दिया। सभी के लिए उनके वाक्य प्रमाण है। ज्ञान एवं पराभक्ति की आनंदमयी अवस्था में सर्वदा स्थित रहते थे। श्री कबीर दास जी ने किसी के प्रभाव में आकर मुख देखी बात नहीं कही। वे जगत् के प्रपंचों से सर्वथा दूर रहे। सत्संग के अमृतबिंदु- नम्रता और नाम-स्मरण से स्वभाव सुधरता है। आज से मैं प्रभु का बन गया हूँ ऐसी भावना करो।
शक्ति और बुद्धि के सदुपयोग से पैसा तो ठीक, परमात्मा भी प्राप्त हो जाते हैं। स्वाध्याय एवं सत्संग से ही स्वभाव सुधरता है। जिसका स्वभाव सुधरता है, उसका संसार भी सुधरता है। व्यवहार- परमार्थ सहज है, व्यवहार कठिन है। अपकीर्ति वाला मनुष्य जीवित होने पर भी मरे हुए के समान है। सेवा-पूजा में भूल होने पर परमात्मा क्षमा कर देते हैं, पर व्यवहार में भूल होने पर लोग क्षमा नहीं करते। अपना व्यवहार भक्तिमय बनाओ। व्यवहार में झूठ बोलने से लाभ के बदले हानि ज्यादा होती है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि- कल की कथा में भगवान नारायण के परम भक्त जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य जी महाराज की मंगलमय कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिलाअजमेर (राजस्थान)।