अपमान मिला, ठोकरें मिली, फिर‍ भी चुप चाप पी गईं आंसू के घूंट…  

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि रामायण में मां कैकेयी को श्रीरामजी की आंखों से देखोगे तो वंदनीय लगेंगी- रामायण के हर पात्र में त्याग और समर्पण है, चाहे कैकेयी ही क्यों न हों. कैकेयी को कभी अपनी आंखों से मत देखना. कैकेयी को देखना हो तो श्रीरामजी की आंखों से देखना तो वह वंदनीय लगेंगी. श्रीरामजी जिसे वंदन करते हैं, जरा सोचिये कि चौदह वर्ष वनवास के पूरे करके जैसे ही प्रभु पधारे हैं अयोध्या में तो सबसे पहले मां कैकयी को वंदन करते हैं. एक श्लोकी रामायण के रचयिता ऋषि ने कहां से आरम्भ की रामायण?

आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्..

इसमें तो पूरा बालकाण्ड ही छूट गया. एक श्लोकी रामायण के रचयिता ऋषि भी यह मानते हैं कि सच्चा रामायण तबसे ही शुरू हुआ जब श्रीराम वन में गये. जरा ध्यान दें- श्रीरामजी को वन भेजते समय मां कैकेयी और राम जी का संवाद है, उस संवाद में भगवान राम ने मां कैकेयी को तीन बार जननी शब्द से सम्बोधित किया-

सुनु जननी सोई सुत बड़भागी. जो पितु मातु वचन अनुरागी.

तनय मातु पितु तोष निहारा. दुर्लभ जननी सकल संसारा..

मुनिगन मिलन विसेषि वन,

सबहिं भाँति हित मोर.

तेहि महँ पितु आयसु बहुरि सम्मत जननी तोर..

जननी तो उसे कहते हैं जो जन्म देने वाली मां हो. मतलब यह है कि प्रभु कहते हैं कि मां रघुवंश के राम को भले ही कौशल्या जी ने जन्म दिया हो लेकिन अब राम राज्य के राम को वन में भेजकर आप जन्म दे रही हो.

बालक को जन्म देते समय स्त्री को प्रसूति की पीड़ा भुगतनी ही पड़ती है.पीड़ा तो माँ कैकेयी को भी भोगनी पड़ेगी. राम राज्य के राम को जन्म देने के लिये आज कैकयी भी जब जननी बनी हैं. यह पीड़ा किस रूप में आई, एक तो राम के वियोग, प्राणों से प्यारे राम को वन में भेजते समय कैकयी के हृदय के भी टुकड़े-टुकड़े हो गये हैं, लेकिन माँ ने अपनी पीड़ा को छुपाया है. आंसू बहाये नहीं, आंसू पी लिये. दूसरी पीड़ा- बेटा चला गया नाता तोड़कर. भरत ने कह दिया अब तू मेरी मां नहीं है. और तीसरी पीड़ा सिंदूर मिट गया लेकिन पी गई आंसू.

गोस्वामी जी ने तो राम बनवास की भागवत में हुये समुद्र मंथन की कथा के साथ तुलना की है. समुद्र मंथन किया देवों और दानवों ने अमृत प्रगट करने के लिये. गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज कहते हैं कि भरत हृदय के उदधि में गुप्त राम प्रेमामृत था, उसे प्रकट करने के लिये राम बनवास हुआ. भरत के हृदय उदधि में गुप्त राम

प्रेमामृत था उसे कोई जानता नहीं था. किसी ने पूछा गोस्वामी जी से कि आप इस घटना का समुद्र मंथन से तुलना करते हैं लेकिन समुद्र मंथन में तो विष भी निकला था तो इस घटना में भी कोई विष प्रकट हुआ है क्या? गोस्वामी जी ने कहा हां यहां भी विष प्रकट हुआ है अवधेश का देहावसान इस प्रसंग का विष है. लेकिन वहां विष प्रकट हुआ तो शंकर जी ने कंठ में धारण कर लिया. नीलकंठ बने महादेव, और यहां जो विष निकला उसे मां कैकेयी ने पी लिया.

जगत की आलोचना, संसार के कठोर शब्द सुने, बेटा पराया हो गया, सिंदूर मिट गया, लेकिन सब सहन किया, यह सब भोगा. क्यों? क्योंकि एक ही हेतु है कि संसार को राम-राज्य का राम मिले. इतना बड़ा त्याग और समर्पण करके पीछे हट जाना, अपमान मिला, ठोकरें मिली, फिर भी मौन रहकर, भीतर ही भीतर आँसुओं को पी जाना, जरा सोचिये कितना बड़ा त्याग है, कितना बड़ा समर्पण है.

इसलिए कैकेयी को देखो तो अपनी आंख से मत देखो, श्री राम जी की आंखों से देखेंगे तब वंदनीय लगेंगी.सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

 

		

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