नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उन जगहों पर विशेष सीबीआई अदालतें स्थापित करने का निर्देश दिया है, जहां 100 से अधिक मामले लंबित हैं। जिससे कि गवाहों तक आसानी से पहुंच सुनिश्चित हो सके और मौजूदा व्यवस्था में भीड़भाड़ कम हो सके। चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को अतिरिक्त सीबीआई विशेष अदालतों की स्थापना के लिए हाईकोर्ट को आवश्यक ढांचागत सुविधाएं प्रदान करने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा कि विशेष सीबीआई अदालतों की संख्या बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि राज्य में एक या दो अदालतों के लिए यह संभव नहीं है कि वे सभी ट्रायल में तेजी लाएं या उन पर रोजाना सुनवाई करें। शीर्ष अदालत ने कहा कि विशेष सीबीआई अदालतें राज्य के उन हिस्सों में स्थापित करने की जरूरत है, जहां 100 से अधिक मामले लंबित हैं। शीर्ष अदालत ने यह निर्देश वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर दिया है, जिसमें मौजूदा व पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों में तेजी लाने की मांग की गई है। पीठ ने कहा कि चूंकि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को सांसदों के खिलाफ लंबित मामलों की निगरानी के लिए एक विशेष खंडपीठ का गठन करने के लिए कहा गया है, इसलिए प्रत्येक हाईकोर्ट को मुकदमे में तेजी लाने और समय सीमा के भीतर उन्हें समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए। न्याय मित्र वरिष्ठ वकील विजय हंसरिया द्वारा दायर एक रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न सीबीआई अदालतों में 121 ऐसे मामले लंबित हैं, जिनमें मौजूदा व पूर्व सांसद शामिल हैं। वहीं 112 मामले मौजूदा विधायकों और पूर्व विधायकों से जुड़े हैं। 37 मामले अभी भी जांच के चरण में हैं। इनमें से सबसे पुराना मामला वह है जो 24 अक्तूबर 2013 को दर्ज किया गया था। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि लंबित मामलों के विवरण से पता चलता है कि ऐसे कई मामले हैं जिनमें आरोप पत्र वर्ष 2000 में दायर हुए हैं, लेकिन अभी भी वे लंबित हैं। कई में आरोप भी तय नहीं हुए हैं। पीठ ने कहा कि हम इन मामलों के संबंध में वर्तमान स्थिति से बेहद चिंतित हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को आश्वासन दिया कि वह सीबीआई को पर्याप्त मानव संसाधन और बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने का मसला एजेंसी के निदेशक के समक्ष रखेंगे, ताकि लंबित जांच जल्द से जल्द पूरी की जा सके। उन्होंने इस बात को एनआईए प्रमुख के समक्ष उठाने का भी भरोसा दिलाया। शीर्ष अदालत ने मेहता से न्याय मित्र के सुझावों पर जवाब देने के लिए कहा है। खासतौर पर जांच में देरी के कारणों का मूल्यांकन करने के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश या हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक निगरानी समिति के गठन के सुझाव पर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।