राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीपद्ममहापुराण में गुरुतीर्थ की महिमा-तीर्थ भगवान के चरणामृत को कहते हैं। जिस पुण्य क्षेत्र में स्थान की महिमा है, उसको धाम कहते हैं। और जहां पावन जल की महिमा है, उसको तीर्थ कहते हैं। श्रीलक्ष्मीनारायण भगवान के मंदिर हम पहुंचते हैं और पुजारी जी से कहते हैं कि हमको तीर्थ प्रदान करिये, तो पुजारी जी भगवान का चरणामृत हमको प्रदान करते हैं। गंगा जी साक्षात् भगवान का चरणामृत ही हैं। इसीलिए उनको विष्णुपदी कहते हैं। भगवान विष्णु के श्रीचरण के अग्रभाग से प्रगट हुई हैं। भगवान का चरणामृत तीन बार लिया जाता है, सदगुरुदेव का चरणामृत दो बार लिया जाता है, और साधु संतों का चरणामृत एक बार लिया जाता है। यह शास्त्रीय परम्परा है। उसके पीछे संकेत यही कि भगवान का चरणामृत तीन बार लेने से जो पुण्य फल की प्राप्ति होती है, सदगुरुदेव का चरणामृत दो बार लेने से वही फल की प्राप्ति हो जाती है। भगवान का चरणामृत तीन बार लेने से जो फल की प्राप्ति होती है, संतों का चरणामृत एक बार लेने से वही फल की प्राप्ति होती है। संत सद्गुरु की बहुत महिमा है। संत सद्गुरु की कृपा के बिना हम भगवान की शरण में जा ही नहीं सकते। गुरुतीर्थ के प्रसंग में महर्षि च्यवन की कथा- कुंजल पक्षी का अपने पुत्र उज्जवल को ज्ञान, व्रत और स्त्रोत का उपदेश-गुरु तीर्थ बड़ा उत्तम तीर्थ है, गुरु के अनुग्रह से शिष्य को लौकिक आचार-व्यवहार का ज्ञान होता है, विज्ञान की प्राप्ति होती है और वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। जैसे सूर्य संपूर्ण लोकों को प्रकाशित करते हैं, उसी प्रकार गुरु शिष्यों को उत्तम बुद्धि देकर उनके अंतर्जगत को प्रकाश पूर्ण बनाते हैं। सूर्य दिन में प्रकाश करते हैं, चंद्रमा रात में प्रकाशित होते हैं और दीपक केवल घर के भीतर उजाला करता है। परंतु गुरु अपने शिष्यों के हृदय में सदा ही प्रकाश फैलाते रहते हैं। वे शिष्यों के अज्ञानमय अंधकार का नाश करते हैं। अतः शिष्यों के लिए गुरु ही सबसे उत्तम तीर्थ हैं। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान
(वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में, चातुर्मास के पावन अवसर पर श्रीपद्ममहापुराण कथा के पांचवें दिवस गुरु महिमा का गान किया गया। कल की कथा में आगे के चरित्रों का वर्णन किया जायेगा।