नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 काल में शुरू हुई वर्चुअल (आभासी) सुनवाई को वादियों का मौलिक अधिकार घोषित करने की मांग वाली याचिका पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एसीईबीए) से जवाब मांगा है। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीएन नागरत्ना की पीठ ने हालांकि उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस आदेश पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अदालत कोर्टरूम सुनवाई फिर से शुरू करेगी और वर्चुअल सुनवाई के किसी अनुरोध पर विचार नहीं किया जाएगा। याचिकाकर्ता संगठन ऑल इंडिया ज्यूरिस्ट्स एसोसिएशन व अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिदार्थ लूथरा ने कहा कि यह मामला वादियों के अधिकार पर प्रतिबंध से संबंधित है। पीठ ने वकील से कहा कि हम बीसीआई और एससीबीए को नोटिस जारी कर रहे हैं। देखते हैं कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है? हमने हाईकोर्ट का आदेश देखा है लेकिन हम इस पर रोक नहीं लगाने जा रहे हैं। पीठ ने बीसीआई और एसीईबीए को नोटिस जारी करते हुए चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। लूथरा ने पीठ से कहा कि अदालतों ने अलग-अलग निर्देश जारी किए हैं। हाइब्रिड विकल्प को समाप्त नहीं किया जाना चाहिए। वादियों को वकीलों की यात्रा पर होने खर्च का वहन नहीं करना पड़ेगा। इस पर पीठ ने वकील से कहा, हम उम्मीद कर रहे हैं कि सामान्य स्थिति हो। 70 साल से वादियों की क्या स्थिति थी। लूथरा ने कहा कि 2013 में इलेक्ट्रॉनिक सुधार आया है। इस पर पीठ ने बीसीआई केअध्यक्ष द्वारा शनिवार को एक समारोह में दिए गए बयान का हवाला दिया। समारोह में कहा गया था कि आभासी सुनवाई के कारण वकीलों को नुकसान हो रहा है। लूथरा ने कहा कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मामलों को सुनवाई नहीं हो पा रही थी। इस पर पीठ ने कहा कि युवा वकील कैसे सीखेंगे? अदालत में आंख से आंख मिलाना होता है। ऑनलाइन अदालत और ऑफलाइन अदालतों के बीच अंतर है। जल्द ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा कब्जा कर लिया जाएगा और कुछ देशों ने भी निर्णय लेने के लिए इसका सहारा लिया। लेकिन हमने स्पष्ट रूप से कहा कि इसका उपयोग भारतीय अदालतों में नहीं किया जा सकता है।