दस्तावेजों में कमी के कारण स्वतंत्रता सेनानियों के पेंशन दावे को न करें खारिज: हाईकोर्ट

मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानियों और उनके आश्रितों के लिए पेंशन योजना को दस्तावेजों, या देरी से आवेदन के कारण का खारिज करने को गलत बताया है। अदालत ने कहा कि अगर यह योजना ऐसे लोगों की मदद और सम्मान की इच्छा के साथ पेश की गई है, तो महाराष्ट्र सरकार द्वारा दस्तावेजों की कमी या देर से आवेदन के कारण दावों को खारिज करना गलत है। जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस माधव जामदार की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार को स्वतंत्रता सेनानियों और उनके आश्रितों तक पहुंचना चाहिए और उन्हें योजना का लाभ देना चाहिए, न कि ऐसे लोगों के आवेदन का इंतजार करना चाहिए। अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह स्वतंत्रता सेनानी की 90 वर्षीय विधवा को स्वतंत्र सैनिक सम्मान पेंशन योजना 1980 के तहत पेंशन देना शुरू करे। यह आदेश रायगढ़ जिले की रहने वाली शालिनी चव्हाण द्वारा दायर एक याचिका पर दिया गया। इसमें उन्होंने मांग की थी कि योजना का लाभ उन्हें दिया जाए, क्योंकि उनके दिवंगत पति लक्ष्मण चव्हाण एक स्वतंत्रता सेनानी थे। आदेश की प्रति शनिवार को उपलब्ध कराई गई। राज्य सरकार ने याचिका पर अपने हलफनामे में दावा किया था कि याचिकाकर्ता पेंशन के लिए अपात्र थी, क्योंकि उसने मूल कारावास प्रमाण पत्र जमा नहीं किया था, जो एक अनिवार्य दस्तावेज है। सरकार ने यह भी कहा कि पेंशन के लिए दावा देर से दायर किया गया था। हालांकि अदालत ने कहा कि इस तरह के आवेदन के लिए एक सख्त समयसीमा नहीं हो सकती है। अदालत ने कहा कि चीजों की प्रकृति में पात्रता के प्रमाण के लिए एक सख्त समयसीमा का निर्धारण अपमानजनक है। अगर यह योजना स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवार के लोगों की सहायता और सम्मान करने की सच्ची इच्छा के साथ शुरू की गई है, तो ऐसे दावों के खिलाफ समयासीमा निर्धारण करना सही नहीं है।

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