नई दिल्ली। भारी घाटे और कर्ज में डूबी सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया को लंबी जद्दोजहद के बाद खरीदार तो मिला, लेकिन 10 वर्षों में इस विमानन कंपनी की ‘उड़ान’ पर करदाताओं के 1,57,339 करोड़ रुपये खर्च हो गए। दिसंबर 2021 में कंपनी की कमान टाटा समूह को सौंपे जाने तक सरकार को इसके पीछे भारी-भरकम राशि खर्च करनी पड़ेगी। निजीकरण से करदाताओं के रोज 20 करोड़ बचेंगे। दरअसल तीन अलग-अलग मंत्रियों, कई बार नियमों में बदलाव और दो बार मिशन रुकने के बाद आखिरकार दो दशक बाद करदाताओं को एयर इंडिया की उड़ान बनाए रखने के लिए प्रतिदिन 20 करोड़ रुपये खर्च नहीं करने होंगे। बिक्री पर कांग्रेस के विरोध के बीच लोक संपत्ति एवं प्रबंधन विभाग (दीपम) के सचिव तुहिन कांत पांडेय का कहना है कि टाटा को हम दुधारू गाय नहीं सौंप रहे हैं। यह कंपनी संकट में थी और इसे खड़ा करने के लिए पैसा लगाने की जरूरत होगी। हालांकि यह आसान काम नहीं होगा। एयर इंडिया के नए मालिक टाटा के पास एकमात्र लाभ यह है कि वे उस कीमत का भुगतान कर रहे हैं, जिसमें उन्हें लगता है कि वे इसका प्रबंधन कर सकेंगे। वे अतिरिक्त कर्ज को नहीं ले रहे हैं। हमने इसे चालू हालत में बरकरार रखा है। सरकार एयर इंडिया और एअर इंडिया एक्सप्रेस में 100 फीसदी हिस्सेदारी के साथ ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी एआईएसएटीएस में 50 फीसदी हिस्सेदारी बेच रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि एयरलाइंस पर सरकार को अब तक मोटी रकम खर्च करनी पड़ी है। अब भी सरकार के हिस्से बड़ी बकायेदारी रहेगी। इसका भुगतान भी करदाताओं के पैसों से ही किया जाना है। 2019 में सरकार ने स्पेशल पर्पज व्हीकल (एसपीवी) के तहत नई कंपनी एयर इंडिया एसेट होल्डिंग लि. (एआईएएचएल) बनाकर उसमें 29,464 करोड़ रुपये डाल दिए थे। इसका मतलब है कि कंपनी के खरीदार को इस कर्ज का भुगतान नहीं करना होगा बल्कि सरकार चुकाएगी।